शनिवार, 21 मार्च 2009

शक्ति स्वरूपा ,चपल चंचला ,दीप्ति स्वामिनी है बिजली

शक्ति स्वरूपा ,चपल चंचला ,दीप्ति स्वामिनी है बिजली ,
निराकार पर सर्व व्याप्त है , आभास दायिनी है बिजली !

मेघ प्रिया की गगन गर्जना , क्षितिज छोर से नभ तक है,
वर्षा ॠतु में प्रबल प्रकाशित , तड़ित प्रवाहिनी है बिजली !

क्षण भर में ही कर उजियारा , अंधकार को विगलित करती ,
हर पल बनती , तिल तिल जलती , तीव्र गामिनी है बिजली !

कभी उजाला, कभी ताप तो, कभी मशीनों का ईंधन बन जाती है,
रूप बदल , सेवा में तत्पर , हर पल हाजिर है बिजली !

सावधान ! चोरी से इसकी , छूने से भी , दुर्घटना घट सकती है ,
मितव्ययिता से सदुपयोग हो , माँग अधिक , कम है बिजली !

गिरे अगर दिल पर दामिनि तो , सचमुच , बचना मुश्किल है,
प्रिये हमारी ! हम घायल हैं, कातिल हो तुम, अदा तुम्हारी है बिजली !

सर्वधर्म समभाव सिखाये , छुआछूत से परे तार से , घर घर जोड़े ,
एक देश है ज्यों शरीर और, तार नसों से , रक्त वाहिनी है बिजली !!

- विवेक रंजन श्रीवास्तव

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