शनिवार, 27 सितंबर 2008

देवी गीत ...निशुल्क

देवी गीत ...
नव रात्री पर्व सारे देश में नौ दस दिनों तक देवी पूजन , भक्तिभाव पूर्ण गायन , उपवास , बड़े बड़े पंडालों की स्थापना , और गरबा के आयोजन कर मनाया जाता है . देवी गीतों का प्रचार सब तरफ बढ़ गया है . पावन पर्व में गीत संगीत से पवित्र भअवना का प्रादुर्भाव और प्रसार बड़ा सुखद व मन भावन होता है . इसी दृष्टि से हर वर्ष नवरात्रि से पहले नये नये देवीगीत , जस , नौराता , के कैसेट्स बाजार में आ जाते हैं . दूर दूर गाँव ,शहरों में उत्सव समितियां ये कैसेट्स अनवरत बजाकर एक भाव भक्ति का वातावरण बना देती हैं . अब तो नवरात्रि के अनुकूल एस एम एस , रिंगटोन , वालपेपर आदि की भी मार्केटिंग हो रही है . बाजार की इस बेहिसाब माँग के चलते अनेक सस्तुआ शब्दों हल्के मनोरंजन वाले विकृत मानसिकता के देवी गीत भी विगत में सुनने को मिले . इनसे मन कोपीड़ा होती है , यह सांस्कृतिक पराभव ठीक नहीं है .
सुरुचिपूर्ण भक्ति , व देवी उपासना के लिये गीत संगीत ऐसा होना चाहिये जो श्रद्धा , विश्वास, सद्भाव , समर्पण तथा भक्ति को बढ़ावा दे .
इसी उद्देश्य से मैंने कुछ भावपूर्ण , सुन्दर , व सार्थक शब्दमय देवी गीतों की रचना की है . जो भी गायक , सी.डी. निर्माता , भक्त , धार्मिक संस्थायें चाहे वे इन सोद्देश्य गीतों को मुझसे निशुल्क जनहित में प्राप्त कर उन्हें प्चारित करने हेतु कैसेट , सीडी बनवा सकते हैं . चाहें तो संपर्क करें .
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव "विदग्ध"
C / 6 ,विद्युत मंडल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
मो. ०९४२५४८४४५२
Email vivek1959@yahoo.co.in

सोमवार, 22 सितंबर 2008

देश सेवा में मन है तो उसके लिये



नेताओं से....................
by ..Prof.C.B.Shrivastava
C/6 , MPSEB Colony , Rampur ,JABALPUR (MP
mob. 09229118812)
देश सेवा परम उच्च आदर्श है
लोगों ने जानें तक दी हैं इसके लिये।
सोचिये आज क्या कर रहे आप हैं
यह उठापटक है सारी किसके लिये ?
देश सेवा में मन है तो उसके लिये
किसी कुर्सी या पद की जरूरत नहीं।
सैकड़ों काम दुनियॉं में सेवा के हैं
जो करें कुछ तो जीवन में फुरसत नहीं ।।
सिर्फ संकल्प के सिवा कुछ भी नहीं
सेवा करने को केवल लगन चाहिये।
अपने मन से भला पूछिये तो जरा
हैं ये कसरत-कवायत भला किसलिये ? ।।1।।
आज इस दल में है, कल किसी और में,
फिर किसी और में फिर किसी और में।
शांति मन की गंवा यों भटक क्यों रहे
भला हासिल क्या यों मन की झकझोर में ।।
है दलों में विचारों की जो भिन्नता
तो चुनावों में कुर्सी का कठजोड़ क्यो ?
देष भी है वहीं और जनता वहीं
लक्ष्य सेवा है तो दलबदल किसलिये ? ।।2।।
व्रत है सेवा का जो, धन का क्यों मोह तो,
क्यों ये सारे हवाले-घोटाले हुये ?
खेले जाते हैं क्यों, कुर्सी के वास्ते
पर्दे के पीछे आवागमन के जुये ?
मोह से जागिये, स्वार्थ को त्यागिये
खुदको भी धोखा देना मुनासिब नहीं
जीतना सारी जनता का मन है उचित
अपनी छबि साफ सुथरी रखें इसलिए ।।3।।

प्रो.सी.बी. श्रीवास्तव `विदग्ध´