मंगलवार, 28 दिसंबर 2010

और यह बात बढ़ाई हमने .....

श्रद्धा जैन गजल के सुंदर शब्दो की हमसफर हैं ....उनकी ये पंक्तियां फेस बुक पर ..

कुछ बात तो ज़रूर थी, मिलने के बाद अब तलक
खुद की तलाश में हूँ मैं, लेकिन मेरे निशाँ नहीं
दुश्मन बना जहान ये, ऐसी फिज़ा बनी ही क्यूँ
मेरे तो राज़, राज़ हैं, कोई भी राज़दां नहीं

और यह बात बढ़ाई हमने .....

गुमशुदा कहो ना उसे , मिल ही जायेगा फेस बुक में
वो शख्स भी अपनों सा ही है, कोई शहनशां नहीं

रविवार, 19 दिसंबर 2010

फरमाईश पर कविता लिखने का प्रोग्राम जारी है इस बार......बिगबास

फरमाईश पर कविता लिखने का प्रोग्राम जारी है पिछली पोस्ट पर टिप्पणी में बिगबास की फरमाईश पर बिगबास पर यह रचना...




बिगबास

विवेक रंजन श्रीवास्तव

इस हमाम में सब नंगे हैं दिखलाता यह सच बिगबास
मन की परतो के भीतर की , तह दिखलाता है बिगबास

जनहित याचिकायें भी लग गईं टीआरपी पर बनी हई है
हर कोई जब करे बुराई , कौन देखता फिर बिगबास ?

स्वेता सीमा वीणा अस्मित, किस्मत सबकी लगी दांव पर
प्रश्न यही करते हैं खुद से ,कब तक किसका घर बिगबास

लिये करोड़ों तब आये हैं , करते हैं पर बस बकवास
सट्टा इस पर लगा हुआ है , जीतेगा अब कौन बिगबास

कुछ घर से बाहर हैं हो गये , कुछ कैमरे में कैद हो गये
चौथी बार रंग कलर्स पर , दिखा रहा सीरियल बिगबास

मंगलवार, 14 दिसंबर 2010

दीदी जी क्या रविवार को भी हम लोगो को स्कूल से खाना नही मिल सकता ?



"अक्षय पात्र " की सफलता की अशेष मंगलकामनायें ...

अनुव्रता श्रीवास्तव
बी. ई . कम्प्यूटर्स
ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

पिछले रविवार की बात है , मैं छुट्टी मनाने के मूड में थी बगीचे में धूप का आनंद ले रहा थी और मम्मी की जल्दी नहा लेने की हिदायत को अनसुना करती अखबार में भ्रष्टाचार की बड़ी बड़ी खबरो के साथ चाय की छोटी छोटी चुस्कियां ले रही थी ,तभी हमारी काम वाली अपनी बच्ची सोनाली के साथ आई . काम वाली तो भीतर काम में व्यस्त हो गई और मैं उसकी बेटी सोनाली से जो अखबार में झांक रही थी , बतियाने लगी . मैने सोनाली से उसकी पढ़ाई की बातें की , मुझे ज्ञात हुआ कि उसके स्कूल में उसे और क्लास की सभी बच्चियों को साइकिल मिली थी ,किताबें भी मुफ्त मिली थी . दोपहर में उनको भोजन भी मिलता है , कभी दाल दलिया , कभी सब्जी चावल या अन्य कुछ . जब सोनाली ने पूछा कि , दीदी जी क्या रविवार को भी हम लोगो को स्कूल से खाना नही मिल सकता ? तब मुझे मिड डे मील की योजना का महत्व समझ आया .मेरे मन में भीतर तक सोनाली का प्रश्न गूंज रहा था ,दीदी जी क्या रविवार को भी हम लोगो को स्कूल से खाना नही मिल सकता ?
लंच पर मैने यह बात डाइनिंग टेबल पर छेड़ी तो पापा ने बतलाया कि शायद तब वे कक्षा दूसरी में पढ़ते थे , एक दिन उनके स्कूल में मिल्क पाउडर से बना दूध कक्षा के सभी बच्चो को दिया जा रहा था ,पापा ने बताया कि तब तो उन्हें समझ नही आया था कि ऐसा क्यो किया गया था ? उन्होंने बताया कि संभवतः वह यूनेस्को का कोई कार्यक्रम था जिसके अंतर्गत बच्चो के स्वास्थ्य की बेहतरी के लिये स्कूल में एक दिन वह दूध वितरण किया गया रहा होगा !
तेजी से बढ़ती आबादी भारत की सबसे बड़ी समस्या है . इसके चलते बच्चो में कुपोषण के आंकड़े चिंताजनक स्तर पर हैं .विभिन्न विश्व संगठन , केंद्र व राज्य सरकारें तो अपने अपने तरीको से महिला एवं बाल कल्याण विभाग , स्वास्थ्य विभाग , समाज कल्याण विभाग आदि के माध्यम से बच्चो के लिये अनेकानेक योजनाओ के द्वारा जन कल्याणकारी योजनायें चला ही रही हैं . किन्तु सुरसा के मुख सी निरंतर विशाल होती जाती यह आहार समस्या बहुत जटिल है , और इसे हल करने में हम सबकी व्यैक्तिक व सामाजिक स्तर पर मदद जरूरी है . केवल सरकारो पर यह जबाबदारी छोड़कर हम निश्चिंत नही हो सकते , यह तथ्य मैं तब बहुत अच्छी तरह समझ चुकी हूं जब हमारे घर की कामवाली की बेटी सोनाली ने मुझसे बहुत मासूमयित से पूछा था दीदी जी क्या रविवार को भी हम लोगो को स्कूल से खाना नही मिल सकता ? हर धर्म हमें यही शिक्षा देता है और सभ्य समाज का यही तकाजा है कि जब तक पड़ोसी भूखा हो हमें चैन की नींद नही सोना चाहिये . फिर यह तो नन्हें बच्चो की भूख का सवाल है .मंदिर , गुरुद्वारे या अन्य धार्मिक स्थलो पर गरीबो की मदद करके शायद हम अपने आप को ही खुशी देते हैं. हममें से अनेक साधन संपन्न लोग सहज ही बच्चो को भोजन कराने का पुण्य कार्य करना चाहें . जन्मदिन , बुजुर्गो की स्मृति में या अन्य अनेक शुभ अवसरो पर लोग भोज के आयोजन करते भी हैं , पर व्यक्तिगत रूप से किसी बच्चे को भोजन कराने की नियमित जबाबदारी उठाना कठिन है .यहीं "अक्षयपात्र" जैसी सामाजिक संस्था का महत्व स्थापित होता है . "अक्षयपात्र फाउण्डेशन" जैसी अशासकीय , लाभ हानि से परे समाजसेवी संस्थाओ को दान देकर हम अपने दिये गये रुपयो के , उसी प्रयोजन हेतु सदुपयोग को सुनिश्चित कर सकते हैं .
बंगलोर की "अक्षयपात्र फाउण्डेशन" आज प्रतिदिन 12,53,266 बच्चो को दोपहर में उनके स्कूल में भोजन की सुव्यवस्था हेतु राष्ट्रीय व अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत हो चुका है . वर्ष जून २००० से जब सरकार ने भी स्कूलों में दोपहर के भोजन की परियोजना प्रारंभ नही की थी तब से "अक्षयपात्र फाउण्डेशन" यह योजना चला रहा है , बाद में सरकारी स्तर पर मिड डे मील कार्यक्रम के प्रारंभ होने पर सहयोगी के रूप में , बृहद स्तर पर "अक्षयपात्र फाउण्डेशन" यह महान कार्य अनवरत रूप से कर रहा हैं . शैक्षणिक गतिविधियो से जुड़ी अन्य अनेक योजनायें जैसे विद्या अक्षय पात्र , अक्षय लाइफ स्किल , लीडरसिप डेवलेपमेंट आदि अनेक योजनायें भी यह संस्था चला रही है . दानदाताओ की सुविधा हेतु एस एम एस या मोबाइल पर सूचना की व्यवस्था की गई है , यदि चाहें तो सूचना मिलने पर दानदाता के घर से ही दान राशि एकत्रित करने हेतु संस्था के वालण्टियर पहुंच सकते हैं .संस्था का कार्य क्षेत्र देश के ८ राज्यो तक विस्तारित हो चुका है व निरंतर विकासशील है .
हमारा कर्तव्य है कि हम "अक्षयपात्र फाउण्डेशन" जैसी संस्था से किसी न किसी रूप में अवश्य ही जुड़ें , दानदाता के रूप में , वालण्टियर के रूप में , प्रचारक के रूप में या लेखक के रूप में ... आइये हम भी अपना योगदान स्वयं ही निर्धारित करें , और बच्चो की भूख मिटाने के महायज्ञ में अपनी आहुती सुनिश्चित करें .आप इस लिंक पर अपना सहयोग दे सकते हैं .

http://www.akshayapatra.org/online-donations

अंत में यही प्रार्थना और संकल्प कि ...

रिक्त न हो ,भरा रहे ,सदा हमारा अक्षय पात्र
हर बच्चे का पेट भरे सदा हमारा अक्षय पात्र

जिस तरह द्रौपदी को सदा भोजन से परिपूरित , भरा रहने वाला अक्षयपात्र वरदान स्वरूप प्राप्त था , देश के जरूरतमंद बच्चो को भी "अक्षयपात्र फाउण्डेशन" के रूप में वही वरदान सुलभ हुआ है , ईश्वर से संस्था की निरंतर सफलता की कामना है .

शनिवार, 11 दिसंबर 2010

वाचस्पति जी की फरमाइश पर , लिखने बैठा था कविता ,गजल बन गई है लगता, लिखता क्या कविता पर कविता

मजा आ गया ... सुबह पोस्ट डालकर टूर पर निकल गया था अभी लौटकर ब्लाग देखा , कविता करने के लिये विषय मिला है कविता .. बस लिख डाला है कुछ ..बताइये कैसी लगी रचना ?कैसा लगा यह नव प्रयोग ?

कविता

विवेक रंजन श्रीवास्तव "विनम्र "

कोमल हृदय तरंगो की , सरगम होती है कविता
शीर्षक के शब्दो को देती , अर्थ सदा पूरी कविता

सजल नयन और तरल हृदय ,परपीड़ा से हो जाता है
हम सब में ही छिपा कवि है ,बता रही हमको कविता

छंद बद्ध हो या स्वच्छंद हो , अभिव्यक्ति का साधन है
मन के भावो का शब्दो में , सीधा चित्रण है कविता

कोई दृश्य , जिसे देखकर ,भी न देख सब पाते हैं
कवि मन को उद्वेलित करता , तब पैदा होती कविता

कवि की उस पीड़ा का मंथन , शब्द चित्र बन जाता है
दृश्य वही देखा अनदेखा , हमको दिखलाती कविता

लेख, कहानी, व्यंग विधायें, लिखने के हथियार बहुत
कम शब्दो में गाते गाते , बात बड़ी कहती कविता

वाचस्पति जी की फरमाइश पर , लिखने बैठा था कविता
गजल बन गई है लगता, लिखता क्या कविता पर कविता

मासूम जी ! मासूमियत ही , कवियो की जागीर है
बम के धमाको,आतंक के माहौल में,शांति संदेशा है कविता

शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010

आप विषय दीजीये मैं लिखूंगा कविता ...कल ही पढ़ियेगा उसे और बताइयेगा केसी लगी ..

आप विषय दीजीये मैं लिखूंगा कविता ...
समस्या पूर्ती हमारी पुरानी विधा है ...
इस ब्लाग को आपके लिये और भी पठनीय बनाने हेतु मेरा आग्रह है कि आप विषय दीजीये मैं लिखूंगा कविता ...
.

शनिवार, 25 सितंबर 2010

हमारे मंदिर और मस्जिद को देने के लिये फूल , सुगंध और साया

रोपना है मीठी नीम अब हमें

कभी देखा है आपने किसी पेड़ को मरते हुये ?
देखा तो होगा शायद
पेड़ की हत्या , पेड़ कटते हुये


हमारी पीढ़ी ने देखा है एक
पुराने , कसैले हो चले
किंवाच और बबूल में तब्दील होते
कड़वे बहुत कड़वे नीम के ठूंठ को
ढ़हते हुये



हमारे मंदिर और मस्जिद
को देने के लिये
फूल , सुगंध और साया
रोपना है आज हमें
एक हरा पौधा
जो एक साथ ही हो
मीठी नीम , सुगंधित गुलाब और बरगद सा

मंगलवार, 20 जुलाई 2010

बरसात की बात

बरसात की बात


विवेक रंजन श्रीवास्तव
ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी
रामपुर , जबलपुर


लो हम फिर आ गये
बरसात की बात करने ,पावस गोष्ठी में
जैसे किसी महिला पत्रिका का
वर्षा विशेषांक हों , बुक स्टाल पर
ये और बात है कि
बरसात सी बरसात ही नही आई है
अब तक
बादल बरसे तो हैं , पर वैसे ही
जैसे बिजली आती है गांवो में
जब तब

हर बार
जब जब
घटायें छाती है
मेरा बेटा खुशियां मनाता है
मेरा अंतस भी भीग जाता है
और मेरा मन होता है एक नया गीत लिखने का
मौसम के इस बदलते मिजाज से
हमारी बरसात से जुड़ी खुशियां बहुगुणित हो
किश्त दर किश्त मिल रही हैं हमें
क्योकि बरसात वैसे ही बार बार प्रारंभ होने को ही हो रही है
जैसे हमें एरियर
मिल रहा है ६० किश्तों में

मुझे लगता है
अब किसान भी
नही करते
बरसात का इंतजार उस व्यग्र तन्मयता से
क्योंकि अब वे सींचतें है खेत , पंप से
और बढ़ा लेते हैं लौकी
आक्सीटोन के इंजेक्शन से

देश हमारा बहुत विशाल है
कहीं बाढ़ ,तो कहीं बरसात बिन
हाल बेहाल हैं
जो भी हो
पर
अब भी
पहली बरसात से
भीगी मिट्टी की सोंधी गंध,
प्रेमी मन में बरसात से उमड़ा हुलास
और झरनो का कलकल नाद
उतना ही प्राकृतिक और शाश्वत है
जितना कालिदास के मेघदूत की रचना के समय था
और इसलिये तय है कि अगले बरस फिर
होगी पावस गोष्ठी
और हम फिर बैठेंगे
इसी तरह
नई रचनाओ के साथ .

गुरुवार, 4 मार्च 2010

बच्चो के सपनो में,परियों की दुआ दीजिये

बच्चो के सपनो में,परियों की दुआ दीजिये

विवेक रंजन श्रीवास्तव
ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी
रामपुर
जबलपुर

बच्चो के सपनो में,परियों की दुआ दीजिये
नींद चैन की मेरे बच्चों की लौटा दीजिये

प्यार का पाठ पढ़ना , यदि अपराध हो
तो सबसे पहले हमको ही सजा दीजिये
नहा आये हैं ,पहने हैं कपड़े झक सफेद
गुलाल प्यार का थोड़ा सा लगा दीजिए

रोशनी की किरण खुद ही चली आयेगी
छेद छोटा सा छत में , बस करा दीजिये
फैला रहा है मुस्कराकर, खुश्बू हवाओ में
इस फूल के पौधे चार, और लगा दीजिये

न बनें नक्सलवादी , न कोई आत्मघाती
इंसानी नस्ल में ,आदमी ही रहने दीजिये