बरसात की बात
विवेक रंजन श्रीवास्तव
ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी
रामपुर , जबलपुर
लो हम फिर आ गये
बरसात की बात करने ,पावस गोष्ठी में
जैसे किसी महिला पत्रिका का
वर्षा विशेषांक हों , बुक स्टाल पर
ये और बात है कि
बरसात सी बरसात ही नही आई है
अब तक
बादल बरसे तो हैं , पर वैसे ही
जैसे बिजली आती है गांवो में
जब तब
हर बार
जब जब
घटायें छाती है
मेरा बेटा खुशियां मनाता है
मेरा अंतस भी भीग जाता है
और मेरा मन होता है एक नया गीत लिखने का
मौसम के इस बदलते मिजाज से
हमारी बरसात से जुड़ी खुशियां बहुगुणित हो
किश्त दर किश्त मिल रही हैं हमें
क्योकि बरसात वैसे ही बार बार प्रारंभ होने को ही हो रही है
जैसे हमें एरियर
मिल रहा है ६० किश्तों में
मुझे लगता है
अब किसान भी
नही करते
बरसात का इंतजार उस व्यग्र तन्मयता से
क्योंकि अब वे सींचतें है खेत , पंप से
और बढ़ा लेते हैं लौकी
आक्सीटोन के इंजेक्शन से
देश हमारा बहुत विशाल है
कहीं बाढ़ ,तो कहीं बरसात बिन
हाल बेहाल हैं
जो भी हो
पर
अब भी
पहली बरसात से
भीगी मिट्टी की सोंधी गंध,
प्रेमी मन में बरसात से उमड़ा हुलास
और झरनो का कलकल नाद
उतना ही प्राकृतिक और शाश्वत है
जितना कालिदास के मेघदूत की रचना के समय था
और इसलिये तय है कि अगले बरस फिर
होगी पावस गोष्ठी
और हम फिर बैठेंगे
इसी तरह
नई रचनाओ के साथ .
1 टिप्पणी:
...बरसात सी बरसात ही नही आई है
अब तक
बादल बरसे तो हैं , पर वैसे ही
जैसे बिजली आती है गांवो में
जब तब...
...इन पंक्तियों ने मन मोह लिया.
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