गुरुवार, 11 अक्तूबर 2007

......................आक्रोश से अंश

जानता हूँ मैं कि तुम्हें ,अच्छा नहीं लगतामेरा लिखना खरा खरामाना कि क्रांति नहीं होगीमेरे लिखने भर सेपर मेरे न लिखने सेयथार्थसुनहले सपनों सा सुंदरतो नहीं हो जायेगा ?सपनों को बनाने के लिये यथार्थविवशता हैअभिव्यक्ति आक्रोश की !......................आक्रोश से अंश

राम सेतु ध्वँस परियोजना सेतुसमुद्रम पर !


राम सेतु ध्वँस परियोजना सेतुसमुद्रम पर !
प्रो सी॑ बी श्रीवास्तव विदग्ध
C-6 , M.P.S.E.B. Colony Rampur ,
Jabalpur (M.P.) 482008
मोबा ०९४२५४८४४५२
भारत सुन्दर देश है मन मोहक परिवेश !
कण कण इसका दे रहा आध्यात्मिक सँदेश !
अनुपम है सँसार मेँ इसका रूप विधान !
देव भूमि विख्यात यह मानव का वरदान !
सभी दिशाओँ का इसे सहज प्राप्त प्रतिसाद !
वायु गगन जल यँहाँ के हरते सकल विषाद !
हिम गिरि देता जल इसे उदधि विमल वातास !
ॠषि मेधाओँ ने रचा है इसका इतिहास !
सँतोषी हैँ नागरिक कर्मठ यहाँ किसान !
सबके मन की भावना जीवन का कल्याण !
रहे मित्र इसके सदा सभी पडोसी देश !
पहुँचाता जिन तक रहा यह धार्मिक उपदेश !
जब जब असुरोँ ने किया यहाँ कहीँ उत्पात !
सदाचार ने हो प्रकट उसका किया निपात !
स्वर्ण द्वीप लँका मेँ था रावण निशिचर राज !
बुद्धिमान हो भी रहा करता रहा अराज !
सेतु बँध कर के वहाँ पहुँचे तब श्री राम !
जो थे मर्यादा पुरुष आदर्शोँ के धाम !
लँका तक निर्माण कर लघु द्वीपोँ पर सेतु !
रामेश्वर से राम गये सीता रक्षा हेतु !
जनमानस की आस्था का यह सेतु महान !
राजनीति पर आज की स्वार्थ लिप्त बेइमान !
ओछी दृष्टि लिये हुये करते हैँ हर काम!
बेशर्मी से कह रहे कहाँ हुये थे राम !
तोड सेतु की भूमि को जल पथ का निर्माण
करने को तैयार हैँ बिन सोचे परिणाम !!
जगह जगह पर हो रहा प्रकृति सँग खिलवाड !
सभी स्वार्थवश कर रहे लेकर कोई आड !
इससे जन हित की जगह दिखता बडा विनाश !
राजनीति से उठ चला लोँगोँ का विश्वास !!
अच्छा हो सदबुद्धि देँ नेताओँ को राम !
जिससे होँ सब कर्म शुभ होँ न कोई बदनाम !!

बुधवार, 10 अक्तूबर 2007

समेट लो सूरज की सारी धूप

समेट लो सुरज की सारी धूप
विवेक रंजन श्रीवास्तव
c-6 , M.P.S.E.B. Colony Rampur ,
Jabalpur (M.P.) 482008
00९४२५४८४४५२
ई मेल vivek1959@yahoo.co.in
लखपती करोडपती
अरबपती
फिर भी और कुछ और
आकाँक्षा का अँतहीन छोर
कल के लिये ही सँजोना है ना तुम्हेँ ?
हो सके तो समेट लो सूरज की सारी धूप
कैद कर लो पूर्णिमा की चाँदनी
और रोक लो बहती हुई हवा
जाने कल मिले न मिले
पर इस सबके लिये तुम्हारी तिजोरी
बहुत छोटी पड जायेगी !
एक बात और
भर पेट ही खा पाओगे
और उतना ही कर पाओगे उपभोग
जितना कर लोगे
समेटने की हविश
से हटकर
उन्मुक्त विचरण करते हुये

मंगलवार, 9 अक्तूबर 2007

राम से भारत का सम्मान जुडा है


राम से भारत का सम्मान जुडा है !
प्रो सी॑ बी श्रीवास्तव विदग्ध
c-6 , M.P.S.E.B. Colony Rampur ,
Jabalpur (M.P.) 482008
मोबा ०९४२५४८४४५२
राम की गाथा चरित्र व जीवन से आदर्श महान जुडा है !
राम के नाम से धर्म नहीं जन जीवन का मन प्राण जुडा है !
राम का सौम्य स्वभाव स्नेह सुशीलता निर्मल पावन गंगा !
राम से संस्कृति का यश गान है भारत का सम्मान जुडा है !

राम तो है एक शाश्वत चेतन तत्व कभी भी जो म्लान नहीँ है !
राम की मानस मूर्ति सशस्त है अक्छय है म्रियमाण नहीँ है !
राम का नाम सदा सुखधाम है जन जन हित नित दीप प्रकाशित !
ऐसे श्री राम से जिसको हो विरोध वो हो कुछ भी इंसान नहीँ है !

राम है बुध्दि विवेक सनेह दया तप त्याग की उज्ज्वल मूरत !
एक विनम्र विवेकी उदार सनेही स्वरूप की सात्विक सूरत !
राम को बाँध न पाई कभी कोई धर्म या देश विशेष की सीमा
भारत दक्छिण पूर्वी एशिया विश्व में व्याप्त है राम की कीरत !!

खिचडी

खिचडी
विवेक रंजन श्रीवास्तव
c-6 , M.P.S.E.B. Colony Rampur ,
Jabalpur (M.P.) 482008
009425163952
ई मेल vivek1959@yahoo.co.in
बीरबल तुम्हारी जाने कब
पकने वाली
खिचडी
जो तुमने पकाई थी कभी
उस गरीब को
न्याय दिलाने के लिये
क्यों आज न्याय के नाम पर
पेशी दर पेशी पक रही है
पक रही है पक रही है
खिचडी क्यों
बगुलों और काले कौऔ की ही गल रही है
और आम जनता
सूखी लकडी सी
देगची से
बहुत नीचे
बेवजह जल रही है
दाल में कुछ काला है जरूर
क्योंकि
रेवडी
सिर्फ अपनों को ही बंट रही है
रेवडी तो हमें चाहिये भी नहीं बीरबल
पर मुश्किल यह है कि
दो जून किचडी भी नहीं मिल रही है

सोमवार, 8 अक्तूबर 2007

निर्वस्त्र !

निर्वस्त्र !
विवेक रंजन श्रीवास्तव
c-6 , M.P.S.E.B. Colony Rampur ,
Jabalpur (M.P.) 482008
009425163952
ई मेल vivek1959@yahoo.co.in
दुनियां मे जब वह आया था
निर्वस्त्र था
तुम भी निर्वस्त्र ही आये थे
ये अलग बात है कि
तुम्हें नर्सिंग होम में ही
झक सफेद तौलिये में लपेट दिया गया
और वह सारा बचपन
नंगा ही घूमता रहा
जब कभी तुम्हारा उससे सामना हुआ
छि॔ गंदा लडका कहकर
तुम्हें उसका परिचय दिया गया
आज जब
उसके मेहनत कश हाथों ने
श्रम कर सी ली है
इज्जत की एक छोटी सी टोपी
तब तुमने
कृपा पूर्वक
अपना पुराना पतलून
देकर उसे कपडों में भी
एक बार फिर कर डाला है
निर्वस्त्र !