बुधवार, 8 फ़रवरी 2012

वसीयत

माना
कि मौत पर वश नही अपना
पर प्रश्न है कि
क्या जिंदगी सचमुच अपनी है ?
हर नवजात के अस्फुट स्वर
कहते हैं कि ईश्वर
इंसान से निराश नहीं है
हमें जूझना है जिंदगी से
और बनाना है
जिदगी को जिंदगी

इसलिये
मेरे बच्चों
अपनी वसीयत में
देकर तुम्हें चल अचल संपत्ति
मैं डालना नहीं चाहता
तुम्हारी जिंदगी में बेड़ियाँ
तुम्हें देता हूँ अपना नाम
ले उड़ो इसे स्वच्छंद/खुले
आकाश में जितना ऊपर उड़ सको

सूरज की सारी धूप
चाँद की सारी चाँदनी
हरे जंगल की शीतल हवा
और झरनों का निर्मल पानी
सब कुछ तुम्हारा है
इसकी रक्षा करना
इसे प्रकृति ने दिया है मुझे
और हाँ किताबों में बंद ज्ञान
का असीमित भंडार
मेरे पिता ने दिया था मुझे
जिसे हमारे पुरखो ने संजोया है
अपने अनुभवों से
वह सब भी सौंपता हूँ तुम्हें
बाँटना इसे जितना बाँट सको
और सौंप जाना कुछ और बढ़ाकर
अपने बच्चों को

हाँ
एक दंश है मेरी पीढ़ी का
जिसे मैं तुम्हें नहीं देना चाहता
वह है सांप्रदायिकता का विष
जिसका अंत करना चाहता हूँ मैं
अपने सामने अपने ही जीवन में...

11 टिप्पणियाँ:

रचना सागर says
16 जून 2009 2:18 अपराह्न

हाँ
एक दंश है मेरी पीढ़ी का
जिसे मैं तुम्हें नहीं देना चाहता
वह है सांप्रदायिकता का विष
जिसका अंत करना चाहता हूँ मैं
अपने सामने अपने ही जीवन में...

बहुत खूब।

सुषमा गर्ग says
16 जून 2009 2:33 अपराह्न

वसीयत एसी ही होनी चाहिये इसी से वसुधैव कुटुम्बकम होगा।

Vijay Kumar Sappatti says
16 जून 2009 2:54 अपराह्न

bahut sundar abhivyakti ... aur in fact yahi aaj ka sahi nirnay honga ...

badhai aur aabhar...

vijay

दिगम्बर नासवा says
16 जून 2009 4:04 अपराह्न

हाँ
एक दंश है मेरी पीढ़ी का
जिसे मैं तुम्हें नहीं देना चाहता
वह है सांप्रदायिकता का विष


kitnaa दर्द chipa है........... इस vasiyat में.......... लाजवाब लिखा

अभिषेक सागर says
16 जून 2009 5:01 अपराह्न

बहुत अच्छी कविता है, बधाई।

बेनामी says
16 जून 2009 5:12 अपराह्न

Nice Poem, Thanks.

Alok Kataria

रंजना says
16 जून 2009 5:20 अपराह्न

Sahi kaha...
Sundar rachna...

महेन्द्र मिश्र says
16 जून 2009 9:47 अपराह्न

सुन्दर अभिव्यक्ति से लबरेज रचना है . आभार.

राजीव तनेजा says
17 जून 2009 7:54 पूर्वाह्न

समय की ज़रूरत भी यही है.....बढिया रचना...बधाई

राजीव तनेजा says
17 जून 2009 7:55 पूर्वाह्न

समय की ज़रूरत भी यही है.....बढिया रचना...बधाई

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` says
17 जून 2009 6:47 अपराह्न

एक सुँदर कृति !
- लावण्या