शनिवार, 13 सितंबर 2008

अंजान से

मेरी भाषा
विवेक रंजन श्रीवास्तव "विनम्र"
सी ६ , विद्युत मंडल कालोनी , रामपुर, जबलपुर म.प्र.
मेरी भाषा
हिन्दी नही है
अंग्रेजी या तमिल भी नही .
मेरी भाषा है
पालने में झूलती किलकारियाँ
चिड़ियों की चहचहाहट
झरनों का कलकल नाद
बादलों की ओट से
सूरज की ताँक झाँक .
मेरी भाषा है
मौन की
नेह की भाषा
स्पर्श की
चैन की भाषा
आखों की
मुस्कान की भाषा
ईमान की
इंसान की भाषा
ना त्रिभाषा ....
बस एक ही भाषा
अंजान से
पहचान की भाषा

वो सचमुच अपनी है

हिन्दी
विवेक रंजन श्रीवास्तव
c/6 , mpseb colony
Rampur , Jabalpur

संस्कृत की बेटी जो
भारत की भाषा है
अद्भुत जो बिरली जो
सचमुच जो संस्कृति है
हिन्दी वो अपनी है
लिपि जिसकी सुन्दर है
सरल और सीधी है
अक्षर जो वाक्य जो
शब्द जो दे संदेश
हिन्दी वो अपनी है
वाणी जो मीठी है
मधुर और स्मित है
ऐसी जो मनभावन
वो सचमुच अपनी है
हिन्दी जो सबकी है
हिन्दी जो तेरी है
हिन्दी जो मेरी है
इसकी है उसकी है
सचमुच जो सबकी है
हिन्दी वो अपनी है
एकता का सूत्र है जो
सरस्वती वरदान है
संपदा हैं शब्द जिसके
व्याकरण सम्मान्य है
हिन्दी वो महान है ...

vivek ranjan shrivastava
09425484452

शुक्रवार, 12 सितंबर 2008

हिन्दी दिवस पर.............

हिन्दी और हिन्दी दिवस
प्रो.सी.बी. श्रीवास्तव "विदग्ध"
सी.६ , विद्युत मंडल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
कहते सब हिन्दी है बिन्दी भारत के भाल की
सरल राष्ट्र भाषा है अपने भारत देश विशाल की
किन्तु खेद है अब तक दिखती नासमझी सरकार की
हिन्दी है आकांक्षी अब भी संवैधानिक अधिकार की !!
सिंहासन पर पदारूढ़ है पर फिर भी वनवास है
महारानी के राजमहल में दासी का वास है
हिन्दी रानी पर प्रशासनिक अंग्रेजी का राज है
हिन्दी के सिर जो चाहिये वह अंग्रेजी के ताज है
इससे नई पीढ़ी में दिखता अंग्रेजी का शोर है
शिक्षण का माध्यम बन बैठी अंग्रेजी सब ओर है
अंग्रेजी का अपने ढ़ंग का ऐसा हुआ पसारा है
बिन सोचे समझे लोगो ने सहज उसे स्वीकारा है
सरल नियम है शासन करता जिसका भी सम्मान है
हर समाज में स्वतः उसी का होने लगता मान है
ग्रामीणों की बोली तक में अब उसकी घुसपैठ है
बाजारों , व्यवहारों में, हर घर में, उसकी ऐठ है
हिन्दी वाक्यों में भी हावी अंग्रेजी के शब्द हैं
जबकि समानार्थी उन सबके हिन्दी में उपलब्ध हैं
गलत सलत बोली जाती अंग्रेजी झूठी शान से
जो बिगाड़ती है संस्कृति को भाषा के सम्मान को
साठ साल की आयु अपनी हिन्दी ने यूँ ही काटी है
हिन्दी दिवस मुझे तो लगता अब केवल परिपाटी है
कल स्वरूप होगा हिन्दी का प्रखर समझ में आता है
अंग्रेजी का भारत के बस दो ही प्रतिशत से नाता है
हिन्दी का विस्तार हो रहा भारी आज विदेशों में
जो बोली औ॔ समझी जाती सभी सही परिवेशों में
बढ़ती जाती रुचि दुनियाँ की हिन्दी के सम्मान में
किन्तु उचित व्यवहार न देखा जाता हिन्दुस्तान में
अच्छा हो शासन समाज समझे अपने व्यवहार को
ना समझी से नष्ट करे न भारतीय संस्कार को
हिन्दी निश्चित अपने ही बल आगे बढ़ती जायेगी
भारत भर की नहीं विश्व की शुभ बिन्दी बन जायेगी
Prof. C. B. Shrivastava "vidagdha"