शनिवार, 12 नवंबर 2011

नई पीढ़ी तक गीता उसी काव्यगत व भावगत आनन्द के साथ पहुंच सके ......

श्रीमद्भगवत गीता विश्व का अप्रतिम ग्रंथ है !
धार्मिक भावना के साथ साथ दिशा दर्शन हेतु सदैव पठनीय है !
जीवन दर्शन का मैनेजमेंट सिखाती है ! पर संस्कृत में है !
हममें से कितने ही हैं जो गीता पढ़ना समझना तो चाहते हैं पर संस्कृत नहीं जानते !
मेरे ८४ वर्षीय पूज्य पिता प्रो सी बी श्रीवास्तव विदग्ध जी संस्कृत व हिन्दी के विद्वान तो हैं ही , बहुत ही अच्छे कवि भी हैं , उन्होने महाकवि कालिदास कृत मेघदूत तथा रघुवंश के श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद किये , वे अनुवाद बहुत सराहे गये हैं . हाल ही उन्होने श्रीमद्भगवत गीता का भी श्लोकशः पद्यानुवाद पूर्ण किया . जिसे वे भगवान की कृपा ही मानते हैं .
उनका यह महान कार्य http://vikasprakashan.blogspot.com/ पर सुलभ है . रसास्वादन करें . व अपने अभिमत से सूचित करें . कृति को पुस्तकाकार प्रकाशित करवाना चाहता हूं जिससे इस पद्यानुवाद का हिन्दी जानने वाले किन्तु संस्कृत न समझने वाले पाठक अधिकतम सदुपयोग कर सकें . नई पीढ़ी तक गीता उसी काव्यगत व भावगत आनन्द के साथ पहुंच सके .
प्रसन्नता होगी यदि इस लिंक का विस्तार आपके वेब पन्ने पर भी करेंगे . यदि कोई प्रकाशक जो कृति को छापना चाहें , इसे देखें तो संपर्क करें ..०९४२५८०६२५२, विवेक रंजन श्रीवास्तव

गुरुवार, 10 नवंबर 2011

हो सहकार , तो उद्धार !

हो सहकार , तो उद्धार !

विवेक रंजन श्रीवास्तव
ओ.बी. 11, एमपीईबी कालोनी
रामपुर, जबलपुर ४८२००८
मो.9425806252


कुछ तुम करो , कुछ हम करें
संग साथ सब बढ़ें !

व्यक्ति हो तो एक हो , समूह में ही शक्ति है
काम बांट कर करें !

कण स्वतंत्र धूल है ,मिलें , सनें और बंधें
मूर्त रूप हम गढ़ें !

बिंदु बिंदु गुम हुये , ढ़ूंढ़ने से न मिलें
मिल गये तो चित्र हैं !

हर्फ हर्फ अर्थ बिन , बस महज हर्फ हैं
संग हुये तो शब्द हैं , वाक्य और निबंध हैं !

अलग हैं तो पृष्ठ हैं , फूंकने से जो उड़ें
किताब क्यूं न हम बनें ?

बुधवार, 17 अगस्त 2011

जिस रिश्ते की डोर भावना, उससे हजारे ,हमारे अन्ना

अन्ना

विवेक रंजन श्रीवास्तव
ओ बी ११ विद्युत मण्डल कालोनी रामपुर
जबलपुर

इस पीढ़ी के देश प्रेम के जज्बे का , नाम बने अन्ना
भारत की भावनाओ का , अभिमान बने अन्ना

बापू ने दुनियां को अहिंसा की , राह थी दिखाई ,उसी
सत्य और सत्याग्रह का ,सीधा सा पैगाम बने अन्ना

हमने ही चुना जिनको , वे ही नहीं सुनते जब ,तो
जन मन की भावनाओ का , संग्राम बने अन्ना

सत्तर की उमर में भी ,किसी नौजवां से कम नहीं
निस्वार्थ आंदोलन के लिये , तुम्हें प्रणाम है अन्ना

बहुत कर चुके वो , लोकतंत्र में , देश का दोहन
भ्रष्टतंत्र का शुद्धिकरण है जरूरी, अंजाम हैं अन्ना

घुप अंधेरी रात को , रोशन करने की ताकत है हममें
जनता शमां है, मशाल भी, और सुनहरी शाम हैं अन्ना

गांधी हमारे बापू ,चाचा हैं नेहरू , और टेरेसा बनी मदर






शनिवार, 30 जुलाई 2011

अस्पताल

अस्पताल

विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र
जनसंपर्क अधिकारी एवं अति. अधीक्षण यंत्री ,ओ.बी. 11, एमपीईबी कालोनी
रामपुर, जबलपुर (मप्र) 482008
मो. 9425806252

जिदंगी कैद है यहां
वेंटीलेटर में।

आक्सीजन सिलेंडर
में भरी है सांसे।

उलटी लटकी है जिदंगी
सिलाइन, ग्लूकोज या खून की बोतलों में

रंग बिरंगे कैप्सूल के चिकने आवरण में
सिमटी हुई है दवा की सारी कडवाहट
जैसे स्वच्छ ओवर कोट में हो पैरा मेडिकल स्टाफ

शुगर कोटेड है टेबलेट्स
किसी सुंदर सी नर्स की मुस्कान की तरह
पर जिदंगी की जद्दोहद बहुत कडवी है

ए.सी. कमरो की दिवारों पर कांच
बडी मंहगी होती है मषीनों में शरीर के भीतर तक जांच

मांस के लोथडे में इंजेक्षन की चुभन
जाने कैसी तो होती है अस्पताल की गंध

धवल सफेद लिबासों में डाक्टर
कुछ बगुले, चंद हंस
गले मे झूलता स्टेथेस्कोप क्या सचमुच सुन पाता है
कितना किसका जिंदगी से नाता है।