रविवार, 11 नवंबर 2007

नीर नर्मदा का मधु हे

नीर नर्मदा का मधु है !
विवेक रंजन श्रीवास्तव
c-6 , M.P.S.E.B. Colony Rampur,
Jabalpur (M.P.) 482008
eks- 009425484452
ई मेल vivek1959@yahoo.co.in

नीर नर्मदा का मधु है !
साधू है हर पीने वाला !
आसक्त न हो भौतिकता का !
मैया तट पर रहने वाला !
मैया का गहना ये वन है !
वनवासी है जीवट वाला !
अपने में परिपूरित जीवन !
संतुष्ट सुखी और मतवाला !
आभूषण पाषाणों के माँ के!
कापू का कछार है फलवाला!
उन सबका जीवन धन्य हुआ!
जिनको गोदी माँ ने पाला !
डुबकी से इक संताप मुक्त हो !
पथिक क्लांत आने वाला !
कल कल बहता नीर निर्मला!
आतृप्त अँजुरी पीने वाला!
समरस सबको करती पोषित!
रेवा माँ ने सबको पाला!
मैया चरणों पर साथ झुकें !
राजा फकीर बालक बाला !
कण कण शंकर बन आप्लावित!
ऐसा मंदिर हैं माँ रेवा !
दर्शन भर से पायें सुदर्शन को !
अद्भुत अमृत जीवन रेखा !

मंगलवार, 23 अक्तूबर 2007

झोपडी

झोपडी
विवेक रंजन श्रीवास्तव
c-6 , M.P.S.E.B. Colony Rampur ,
Jabalpur (M.P.) 482008
009425163952
ई मेल vivek1959@yahoo.co.in
झोपडी तुम इकाई हो
इमारतों की
तुम्हें नही मिटने देंगे
ये सरकारी दफ्तर
और उनमें काम करने वाले
तुम्हारी गिनती पर आधारित हैं
इनकी योजनायें
और उनका धन आबंटन
बरसात में बाढ़ आती है
तुम्हारी क्षति का आकलन होता है
सहायता राशि बंटती है
कुछ न कुछ इनके लिये भी बचती है
संवेदना के सर्वेक्षणों की
हवाई यात्रा
फोटो फ्रंट पेज पर छपती है
शीत लहर चलेगी
प्रकृति का नियम ही है
तुम्हारे आसपास
अलाव की माँग उठेगी
कोई समाज सेवी संस्था
तुम्हारे इलाके में कँबल बांटेगी
सरकारी अनुदान की आँच तापेगी
गर्मियों मे
आग लगने की
घटनायें भी होंगी ही
तब
घांस फूस बाँस के साथ
स्वाहा हो जायेंगे
तुम्हारे भीतर बुने गये
छोटे छोटे सपने
नेता जी बिना बुलाये आयेंगे
बहुत सी घोषणायें कर जायेंगे
झोपडी
तुम नेता जी का वोट बैंक हो
तुम्हें नही मिटने देंगी
उनकी आकांक्षायें
झोपडी
तुम्हारे चित्र कला है
तुम्हारी संस्कृति लोक जीवन है
तुम्हारी बेबसी
कथाकार का बिम्ब है
तुम्हारे अक्स में जिंदा है भारत
तुम्हें नहीं पता
तुम विकास के मैनेजमैंट का
कच्चा माल हो
और जनवादी चिंतन का आधार हो
जागो झोपडी
जागो
तुम्हारे हिस्से की नदी बही जा रही है
उसमें नहा रहे हैं
अफसरों के बंगले
और नेताओं की हवेलियां
क्रंदन कर रहा है तुम्हारे हिस्से का समुद्र
और झुका जा रहा है तुम्हारा आकाश
उठो जोपडी
पढ़ो विकास के पहाडे
तुम्हारी पूँजी है तुम्हारी सँख्या
तुम्हारी शक्ति है तुम्हारा श्रम
तुम्हें रिझाने चली आ रही हैं दुनियाँ
देखो छप्पर के सूराख से
सूरज झाँक रहा है
लेकर बेतहाशा सुरमई धूप
तुम्हारे हिस्से की
और घुसा आ रहा है
ताजी हवा का झोंका
तुम्हारा
पसीना पोंछने !

सोमवार, 22 अक्तूबर 2007

राम जाने कि क्यों राम आते नहीं !

राम जाने कि क्यों राम आते नहीं !

प्रो सी॑ बी श्रीवास्तव विदग्ध
c-6 , M.P.S.E.B. Colony Rampur ,
Jabalpur (M.P.) 482008
मोबा ०९४२५४८४४५२
हो रहा आचरण का निरंतर पतन राम जाने कि क्यों राम आते नहीं !
हैं जहाँ भी कहीं हैं दुखी साधुजन लेके उनकोशरण क्यों बचाते नहीं !
है सिसकती अयोध्या दुखी नागरिक कट गये चित्रकूटों के रमणीक वन
स्वर्णमृग चर रहे दण्डकारण्य को पंचवटियों में बढ़ गया है अपहरण
घूमते हैं असुर साधु के वेश में अहिल्याये कई फिर बन गईं हैं शिला
सारी दुनियाँ में फैला अनाचार है रुकता दिखता नहीं ये बुरा सिलसिला
हो रहा गाँव नगरों में सीता हरण राम जाने कि क्यों राम आते नहीं !
सारे आदर्श बस सुनने पढ़ने को हैं आचरण में अधिकतर है मनमानियां
जिसकी लाठी है उसकी ही भैंस है राजनेताओं में दिखती हैं नादानियां
स्वप्न में भी न सोचा जो होता है वो हर समस्या उठाती नये प्रश्न कई
मान मिलता है कम समझदार को भीड नेताओं की इतनी है बढ़ गई
हर जगह डगमगा गया है संतुलन राम जाने कि क्यों राम आते नहीं !
बढ़ती जाती है कलह हर जगह बेवजह नेह सद्भाव पडते दिखाई नहीं
एकता प्रेम विश्वास हैं अधमरे आदमियत आदमी से हुई गुम कहीं
स्वार्थ सिंहासनों पर आसीन है कोई समझता नहीँ किसी की व्यथा
मिट गई रेखा लक्षमण ने खींची थी जो राम जाने कि क्यों राम आते नहीं !

बुधवार, 17 अक्तूबर 2007

श्री चित्रगुप्त देवेश


ॐ श्री चित्रगुप्त देवेश जय हो श्री चित्रगुप्त स्वामी.................सुखदाता तुम , दुखत्राता तुम , प्रभु अन्तरयामीब्रम्ह देव के मानस सुत तुम , काया से उभरे जग का लेखा जोखा रखते कलम दवात धरे समदर्शी निष्पक्छ विचारक शांत न्यायकारी विमल दृष्टि ,ग्यानी , गुन सागर जग के हितकारि ॐ श्री चित्रगुप्त देवेश जय हो श्री चित्रगुप्त स्वामी...............चिर अविनाशी , घट घट वासी जन जन के स्वामी हर मन की इच्छा के ग्याता , वरदाता नामी रखते प्रभु तुम छण छण हर जन जीवन का लेखा छुपी न तुमसे कभी किसी की ,गुप्त चित्त रेखा ॐ श्री चित्रगुप्त देवेश जय हो श्री चित्रगुप्त स्वामी...............वीतराग तुम तुम्हें परम प्रिय ,सत्य न्याय शिक्छा सदा शांति प्रिय सात्विक भक्तों की करते रक्छा भक्ति भाव से मिल हम करते पूजन आराधन करो देव स्वीकार , सफल हो तन मन धन साधनॐ श्री चित्रगुप्त देवेश जय हो श्री चित्रगुप्त स्वामी...............कृपा करो प्रभु हर कुल में नित सुख समृद्धि पले हो सदभाव हरेक के मन में , प्रेमल ज्योति जले दूर अँधेरा हो हर घर से , आश किरन छाये दुःखो से तपता जीवन पा आशीष मुस्काये ॐ श्री चित्रगुप्त देवेश जय हो श्री चित्रगुप्त स्वामी................

मंगलवार, 16 अक्तूबर 2007

राम जाने कि क्यों राम आते नहीं

हो रहा आचरण का निरंतर पतन ,
राम जाने कि क्यों राम आते नहींहै
सिसकती अयोध्या दुखी
देके उनको देके शरण क्यों बचाते नहीं ?
..................अनुगुंजन से

मेघदूतम् का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद


महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम् का श्लोकशः हिन्दी
द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव
संस्कृत
सुखमुपगतं दुःखमेकान्ततोवानीचैर्गच्छिति उपरिचदशा चक्रमिक्रमेण
अनुवाद
किसको मिला सुख सदा या भला दुःखदिवस रात इनके चरण चूमते हैंसदा चक्र की परिधि की भाँति क्रमशःजगत में ये दोनों रहे घूमते हैं...................मेघदूतम् हिन्दी पद्यानुवाद से अंश

धर्म तो प्रेम का दूसरा नाम है


धर्म तो प्रेम का दूसरा नाम है ,
प्रेम को कोई बंधन नहीं चाहिये
सच्ची पूजा तो होती है मन से जिसे
आरती धूप चंदन नहीं चाहिये

हंस वाहिनी वीण वादिनी शारदे


शुभवस्त्रे हंस वाहिनी वीण वादिनी शारदे ,
संसार को अवलंब दे आधार दे !
रही घर घर निरंतर आज धन की साधना ,
स्वारथ के चंदन अगरु से अर्चना आराधना
आतम वंचित मन सशंकित विश्व बहुत उदास है
,चेतना जग की जगा मां वीण की झंकार दे !

हम सबकी माँ भारत माता


हिमगिरि शोभित सागर सेवितसुखदा गुणमय गरिमा वालीसस्य श्यामला शांति दायिनीपरम विशाला वैभवशाली ॥प्राकृत पावन पुण्य पुरातनसतत नीती नय नेह प्रकाशिनिसत्य बन्धुता समता करुणास्वतंत्रता शुचिता अभिलाषिणि ॥ग्यानमयी युग बोध दायिनीबहु भाषा भाषिणि सन्मानीहम सबकी माँ भारत मातासुसंस्कार दायिनि कल्यानी ॥

गुरुवार, 11 अक्तूबर 2007

......................आक्रोश से अंश

जानता हूँ मैं कि तुम्हें ,अच्छा नहीं लगतामेरा लिखना खरा खरामाना कि क्रांति नहीं होगीमेरे लिखने भर सेपर मेरे न लिखने सेयथार्थसुनहले सपनों सा सुंदरतो नहीं हो जायेगा ?सपनों को बनाने के लिये यथार्थविवशता हैअभिव्यक्ति आक्रोश की !......................आक्रोश से अंश

राम सेतु ध्वँस परियोजना सेतुसमुद्रम पर !


राम सेतु ध्वँस परियोजना सेतुसमुद्रम पर !
प्रो सी॑ बी श्रीवास्तव विदग्ध
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Jabalpur (M.P.) 482008
मोबा ०९४२५४८४४५२
भारत सुन्दर देश है मन मोहक परिवेश !
कण कण इसका दे रहा आध्यात्मिक सँदेश !
अनुपम है सँसार मेँ इसका रूप विधान !
देव भूमि विख्यात यह मानव का वरदान !
सभी दिशाओँ का इसे सहज प्राप्त प्रतिसाद !
वायु गगन जल यँहाँ के हरते सकल विषाद !
हिम गिरि देता जल इसे उदधि विमल वातास !
ॠषि मेधाओँ ने रचा है इसका इतिहास !
सँतोषी हैँ नागरिक कर्मठ यहाँ किसान !
सबके मन की भावना जीवन का कल्याण !
रहे मित्र इसके सदा सभी पडोसी देश !
पहुँचाता जिन तक रहा यह धार्मिक उपदेश !
जब जब असुरोँ ने किया यहाँ कहीँ उत्पात !
सदाचार ने हो प्रकट उसका किया निपात !
स्वर्ण द्वीप लँका मेँ था रावण निशिचर राज !
बुद्धिमान हो भी रहा करता रहा अराज !
सेतु बँध कर के वहाँ पहुँचे तब श्री राम !
जो थे मर्यादा पुरुष आदर्शोँ के धाम !
लँका तक निर्माण कर लघु द्वीपोँ पर सेतु !
रामेश्वर से राम गये सीता रक्षा हेतु !
जनमानस की आस्था का यह सेतु महान !
राजनीति पर आज की स्वार्थ लिप्त बेइमान !
ओछी दृष्टि लिये हुये करते हैँ हर काम!
बेशर्मी से कह रहे कहाँ हुये थे राम !
तोड सेतु की भूमि को जल पथ का निर्माण
करने को तैयार हैँ बिन सोचे परिणाम !!
जगह जगह पर हो रहा प्रकृति सँग खिलवाड !
सभी स्वार्थवश कर रहे लेकर कोई आड !
इससे जन हित की जगह दिखता बडा विनाश !
राजनीति से उठ चला लोँगोँ का विश्वास !!
अच्छा हो सदबुद्धि देँ नेताओँ को राम !
जिससे होँ सब कर्म शुभ होँ न कोई बदनाम !!

बुधवार, 10 अक्तूबर 2007

समेट लो सूरज की सारी धूप

समेट लो सुरज की सारी धूप
विवेक रंजन श्रीवास्तव
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लखपती करोडपती
अरबपती
फिर भी और कुछ और
आकाँक्षा का अँतहीन छोर
कल के लिये ही सँजोना है ना तुम्हेँ ?
हो सके तो समेट लो सूरज की सारी धूप
कैद कर लो पूर्णिमा की चाँदनी
और रोक लो बहती हुई हवा
जाने कल मिले न मिले
पर इस सबके लिये तुम्हारी तिजोरी
बहुत छोटी पड जायेगी !
एक बात और
भर पेट ही खा पाओगे
और उतना ही कर पाओगे उपभोग
जितना कर लोगे
समेटने की हविश
से हटकर
उन्मुक्त विचरण करते हुये

मंगलवार, 9 अक्तूबर 2007

राम से भारत का सम्मान जुडा है


राम से भारत का सम्मान जुडा है !
प्रो सी॑ बी श्रीवास्तव विदग्ध
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मोबा ०९४२५४८४४५२
राम की गाथा चरित्र व जीवन से आदर्श महान जुडा है !
राम के नाम से धर्म नहीं जन जीवन का मन प्राण जुडा है !
राम का सौम्य स्वभाव स्नेह सुशीलता निर्मल पावन गंगा !
राम से संस्कृति का यश गान है भारत का सम्मान जुडा है !

राम तो है एक शाश्वत चेतन तत्व कभी भी जो म्लान नहीँ है !
राम की मानस मूर्ति सशस्त है अक्छय है म्रियमाण नहीँ है !
राम का नाम सदा सुखधाम है जन जन हित नित दीप प्रकाशित !
ऐसे श्री राम से जिसको हो विरोध वो हो कुछ भी इंसान नहीँ है !

राम है बुध्दि विवेक सनेह दया तप त्याग की उज्ज्वल मूरत !
एक विनम्र विवेकी उदार सनेही स्वरूप की सात्विक सूरत !
राम को बाँध न पाई कभी कोई धर्म या देश विशेष की सीमा
भारत दक्छिण पूर्वी एशिया विश्व में व्याप्त है राम की कीरत !!

खिचडी

खिचडी
विवेक रंजन श्रीवास्तव
c-6 , M.P.S.E.B. Colony Rampur ,
Jabalpur (M.P.) 482008
009425163952
ई मेल vivek1959@yahoo.co.in
बीरबल तुम्हारी जाने कब
पकने वाली
खिचडी
जो तुमने पकाई थी कभी
उस गरीब को
न्याय दिलाने के लिये
क्यों आज न्याय के नाम पर
पेशी दर पेशी पक रही है
पक रही है पक रही है
खिचडी क्यों
बगुलों और काले कौऔ की ही गल रही है
और आम जनता
सूखी लकडी सी
देगची से
बहुत नीचे
बेवजह जल रही है
दाल में कुछ काला है जरूर
क्योंकि
रेवडी
सिर्फ अपनों को ही बंट रही है
रेवडी तो हमें चाहिये भी नहीं बीरबल
पर मुश्किल यह है कि
दो जून किचडी भी नहीं मिल रही है

सोमवार, 8 अक्तूबर 2007

निर्वस्त्र !

निर्वस्त्र !
विवेक रंजन श्रीवास्तव
c-6 , M.P.S.E.B. Colony Rampur ,
Jabalpur (M.P.) 482008
009425163952
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दुनियां मे जब वह आया था
निर्वस्त्र था
तुम भी निर्वस्त्र ही आये थे
ये अलग बात है कि
तुम्हें नर्सिंग होम में ही
झक सफेद तौलिये में लपेट दिया गया
और वह सारा बचपन
नंगा ही घूमता रहा
जब कभी तुम्हारा उससे सामना हुआ
छि॔ गंदा लडका कहकर
तुम्हें उसका परिचय दिया गया
आज जब
उसके मेहनत कश हाथों ने
श्रम कर सी ली है
इज्जत की एक छोटी सी टोपी
तब तुमने
कृपा पूर्वक
अपना पुराना पतलून
देकर उसे कपडों में भी
एक बार फिर कर डाला है
निर्वस्त्र !