मेरी कवितायें
आक्रोश के स्वर ही कुछ परिवर्तन ला सकते है , इस जड़ समाज में
पठनीय
Reminiscence...
प्रो.सी.बी.श्रीवास्तव "विदग्ध"
नमस्कार
विवेक के व्यंग्य
संस्कृत का मजा हिन्दी में
बिजली चोरी के विरूद्ध
मंगलवार, 16 अक्टूबर 2007
धर्म तो प्रेम का दूसरा नाम है
धर्म तो प्रेम का दूसरा नाम है ,
प्रेम को कोई बंधन नहीं चाहिये
सच्ची पूजा तो होती है मन से जिसे
आरती धूप चंदन नहीं चाहिये
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