मंगलवार, 23 अक्तूबर 2007

झोपडी

झोपडी
विवेक रंजन श्रीवास्तव
c-6 , M.P.S.E.B. Colony Rampur ,
Jabalpur (M.P.) 482008
009425163952
ई मेल vivek1959@yahoo.co.in
झोपडी तुम इकाई हो
इमारतों की
तुम्हें नही मिटने देंगे
ये सरकारी दफ्तर
और उनमें काम करने वाले
तुम्हारी गिनती पर आधारित हैं
इनकी योजनायें
और उनका धन आबंटन
बरसात में बाढ़ आती है
तुम्हारी क्षति का आकलन होता है
सहायता राशि बंटती है
कुछ न कुछ इनके लिये भी बचती है
संवेदना के सर्वेक्षणों की
हवाई यात्रा
फोटो फ्रंट पेज पर छपती है
शीत लहर चलेगी
प्रकृति का नियम ही है
तुम्हारे आसपास
अलाव की माँग उठेगी
कोई समाज सेवी संस्था
तुम्हारे इलाके में कँबल बांटेगी
सरकारी अनुदान की आँच तापेगी
गर्मियों मे
आग लगने की
घटनायें भी होंगी ही
तब
घांस फूस बाँस के साथ
स्वाहा हो जायेंगे
तुम्हारे भीतर बुने गये
छोटे छोटे सपने
नेता जी बिना बुलाये आयेंगे
बहुत सी घोषणायें कर जायेंगे
झोपडी
तुम नेता जी का वोट बैंक हो
तुम्हें नही मिटने देंगी
उनकी आकांक्षायें
झोपडी
तुम्हारे चित्र कला है
तुम्हारी संस्कृति लोक जीवन है
तुम्हारी बेबसी
कथाकार का बिम्ब है
तुम्हारे अक्स में जिंदा है भारत
तुम्हें नहीं पता
तुम विकास के मैनेजमैंट का
कच्चा माल हो
और जनवादी चिंतन का आधार हो
जागो झोपडी
जागो
तुम्हारे हिस्से की नदी बही जा रही है
उसमें नहा रहे हैं
अफसरों के बंगले
और नेताओं की हवेलियां
क्रंदन कर रहा है तुम्हारे हिस्से का समुद्र
और झुका जा रहा है तुम्हारा आकाश
उठो जोपडी
पढ़ो विकास के पहाडे
तुम्हारी पूँजी है तुम्हारी सँख्या
तुम्हारी शक्ति है तुम्हारा श्रम
तुम्हें रिझाने चली आ रही हैं दुनियाँ
देखो छप्पर के सूराख से
सूरज झाँक रहा है
लेकर बेतहाशा सुरमई धूप
तुम्हारे हिस्से की
और घुसा आ रहा है
ताजी हवा का झोंका
तुम्हारा
पसीना पोंछने !

सोमवार, 22 अक्तूबर 2007

राम जाने कि क्यों राम आते नहीं !

राम जाने कि क्यों राम आते नहीं !

प्रो सी॑ बी श्रीवास्तव विदग्ध
c-6 , M.P.S.E.B. Colony Rampur ,
Jabalpur (M.P.) 482008
मोबा ०९४२५४८४४५२
हो रहा आचरण का निरंतर पतन राम जाने कि क्यों राम आते नहीं !
हैं जहाँ भी कहीं हैं दुखी साधुजन लेके उनकोशरण क्यों बचाते नहीं !
है सिसकती अयोध्या दुखी नागरिक कट गये चित्रकूटों के रमणीक वन
स्वर्णमृग चर रहे दण्डकारण्य को पंचवटियों में बढ़ गया है अपहरण
घूमते हैं असुर साधु के वेश में अहिल्याये कई फिर बन गईं हैं शिला
सारी दुनियाँ में फैला अनाचार है रुकता दिखता नहीं ये बुरा सिलसिला
हो रहा गाँव नगरों में सीता हरण राम जाने कि क्यों राम आते नहीं !
सारे आदर्श बस सुनने पढ़ने को हैं आचरण में अधिकतर है मनमानियां
जिसकी लाठी है उसकी ही भैंस है राजनेताओं में दिखती हैं नादानियां
स्वप्न में भी न सोचा जो होता है वो हर समस्या उठाती नये प्रश्न कई
मान मिलता है कम समझदार को भीड नेताओं की इतनी है बढ़ गई
हर जगह डगमगा गया है संतुलन राम जाने कि क्यों राम आते नहीं !
बढ़ती जाती है कलह हर जगह बेवजह नेह सद्भाव पडते दिखाई नहीं
एकता प्रेम विश्वास हैं अधमरे आदमियत आदमी से हुई गुम कहीं
स्वार्थ सिंहासनों पर आसीन है कोई समझता नहीँ किसी की व्यथा
मिट गई रेखा लक्षमण ने खींची थी जो राम जाने कि क्यों राम आते नहीं !