tag:blogger.com,1999:blog-1830786772820095352024-02-07T21:47:15.543-08:00मेरी कवितायेंआक्रोश के स्वर ही कुछ परिवर्तन ला सकते है , इस जड़ समाज मेंVivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.comBlogger80125tag:blogger.com,1999:blog-183078677282009535.post-8685666047217311832019-04-28T06:25:00.000-07:002019-04-28T06:25:24.741-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div dir="ltr">
</div>
<div dir="ltr">
अच्छा लगता है</div>
<div dir="ltr">
विवेक रंजन श्रीवास्तव</div>
<div dir="ltr">
<br /></div>
<div dir="ltr">
कवि गोष्ठी से मंथन करते , घर लौटें तो अच्छा लगता है<br />
शब्द तुम्हारे कुछ जो लेकर, घर लौटें तो अच्छा लगता है</div>
<div dir="ltr">
कौन किसे कुछ देता यूँ ही, कौन किसे सुनता है आज<br />
छंद सुनें और गाते गाते, घर लौटें तो अच्छा लगता है</div>
<div dir="ltr">
शुष्क समय में शून्य हृदय हैं , सब अपनी मस्ती में गुम हैं<br />
रचनायें सुन भाव विभोरित , घर लौटें तो अच्छा लगता है</div>
<div dir="ltr">
मेरी पीड़ा तुम्हें पता क्या , तेरी पीड़ा पर चुप हम हैं<br />
पर पीड़ा पर लिखो पढो जो ,और सुनो तो अच्छा लगता है</div>
<div dir="ltr">
एक दूसरे की कविता पर, मुग्ध तालियां उन्हें मुबारक<br />
गीत गजल सुन द्रवित हृदय जब रो देता तो अच्छा लगता है</div>
<div dir="ltr">
कविताओं की विषय वस्तु तो , कवि को ही तय करनी है<br />
शाश्वत भावों की अभिव्यक्ति सुनकर किंतु अच्छा लगता है</div>
<div dir="ltr">
रचना पढ़े बिना , समझे बिन , नाम देख दे रहे बधाई<br />
आलोचक पाठक की पाती पढ़कर लेकिन अच्छा लगता है</div>
<div dir="ltr">
कई डायरियां , ढेरों कागज, खूब रंगे हैं लिख लिखकर<br />
पढ़ने मिलता छपा स्वयं का, अब जो तो अच्छा लगता है</div>
<div dir="ltr">
बहुत पढ़ा और लिखा बहुत , कई जलसों में शिरकत की<br />
घण्टो श्रोता बने , बैठ अब मंचो पर अच्छा लगता है</div>
<div dir="ltr">
बड़ा सरल है वोट न देना , और कोसना शासन को<br />
लम्बी लाइन में लगकर पर , वोटिंग करना अच्छा लगता है</div>
<div dir="ltr">
जीते जब वह ही प्रत्याशी, जिसको हमने वोट किया <br />
मन की चाहत पूरी हो ,सच तब ही तो अच्छा लगता है</div>
<div dir="ltr">
कितने ही परफ्यूम लगा लो विदेशी खुश्बू के<br />
पहली बारिश पर मिट्टी की सोंधी खुश्बू से अच्छा लगता है</div>
<div dir="ltr">
बंद द्वार की कुंडी खटका भीतर जाना किसको भाता है<br />
बाट जोहती जब वो आँखें मिलती तब ही अच्छा लगता है</div>
<div dir="ltr">
बच्चों के सुख दुख के खातिर पल पल जीवन होम करें<br />
बाप से बढ़कर निकलें बच्चें ,तो तय है कि अच्छा लगता है </div>
<div dir="ltr">
<br /></div>
<div dir="ltr">
विवेक रंजन श्रीवास्तव<br />
ए 1 शिला कुंज नयागांव जबलपुर<br />
मो <a href="tel:7000375798">7000375798</a><br />
<br />
<br />
<br /></div>
<br /></div>
Vivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-183078677282009535.post-47436373452468065022018-08-19T03:23:00.003-07:002018-08-19T03:23:44.792-07:00५ बाल गीत <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="ii gt" id=":2yl">
<div class="a3s aXjCH " id=":2ym">
<div dir="auto">
<div dir="auto">
1</div>
<div dir="auto">
योग</div>
<div dir="auto">
विवेक रंजन श्रीवास्तव</div>
<div dir="auto">
<br /></div>
<div dir="auto">
थोड़ा-थोड़ा</div>
<div dir="auto">
योग करो</div>
<div dir="auto">
सुबह सवेरे </div>
<div dir="auto">
रोज करो</div>
<div dir="auto">
<br /></div>
<div dir="auto">
बिल्कुल सीधे</div>
<div dir="auto">
खड़े रहो</div>
<div dir="auto">
शव आसन में </div>
<div dir="auto">
पड़े रहो </div>
<div dir="auto">
<br /></div>
<div dir="auto">
सांस भरो और </div>
<div dir="auto">
उठो जरा</div>
<div dir="auto">
छोड़ो सांसे </div>
<div dir="auto">
रुके रहो </div>
<div dir="auto">
<br /></div>
<div dir="auto">
बैठ के आसन</div>
<div dir="auto">
लेट के आसन</div>
<div dir="auto">
खड़े-खड़े भी </div>
<div dir="auto">
होते आसन</div>
<div dir="auto">
<br /></div>
<div dir="auto">
जैसा जैसा</div>
<div dir="auto">
गुरु कहें</div>
<div dir="auto">
वही करो और </div>
<div dir="auto">
स्वस्थ रहो ।</div>
<div dir="auto">
<br /></div>
<div dir="auto">
2</div>
<div dir="auto">
सफाई</div>
<div dir="auto">
विवेक रंजन श्रीवास्तव </div>
<div dir="auto">
<br /></div>
<div dir="auto">
रखना साफ-सफाई भाई </div>
<div dir="auto">
रखना साफ-सफाई</div>
<div dir="auto">
कभी ना फैलाना तुम कचरा रखना साफ-सफाई</div>
<div dir="auto">
<br /></div>
<div dir="auto">
चाकलेट बिस्किट जो खाओ</div>
<div dir="auto">
रैपर कूड़ेदान में डालो </div>
<div dir="auto">
फल खाओ तो गुठली छिलके कचरे के डिब्बे में फेंको</div>
<div dir="auto">
<br /></div>
<div dir="auto">
कॉपी अपनी कभी न फाड़ो पुस्तक के पन्ने मत मोड़ो</div>
<div dir="auto">
चिन्धी बिलकुल न फैलाना</div>
<div dir="auto">
रखना साफ सफाई भाई</div>
<div dir="auto">
रखना साफ सफाई</div>
<div dir="auto">
<br /></div>
<div dir="auto">
<br /></div>
<div dir="auto">
3</div>
<div dir="auto">
बिजली</div>
<div dir="auto">
विवेक रंजन श्रीवास्तव</div>
<div dir="auto">
<br /></div>
<div dir="auto">
बड़ी कीमती</div>
<div dir="auto">
होती बिजली</div>
<div dir="auto">
बिन बिजली </div>
<div dir="auto">
रहता अंधियार</div>
<div dir="auto">
<br /></div>
<div dir="auto">
चले न पंखा </div>
<div dir="auto">
और न गीजर</div>
<div dir="auto">
बिन बिजली</div>
<div dir="auto">
बेकार है कूलर</div>
<div dir="auto">
<br /></div>
<div dir="auto">
बिजली से ही </div>
<div dir="auto">
चलता टी वी</div>
<div dir="auto">
बिन बिजली </div>
<div dir="auto">
बेकार कंप्यूटर </div>
<div dir="auto">
<br /></div>
<div dir="auto">
इसीलिए तो </div>
<div dir="auto">
कहते हैं </div>
<div dir="auto">
बिजली ना </div>
<div dir="auto">
बेकार करेंगे </div>
<div dir="auto">
कमरे से बाहर </div>
<div dir="auto">
जाना हो</div>
<div dir="auto">
तो सारे स्विच </div>
<div dir="auto">
बंद करेंगे</div>
<div dir="auto">
<br /></div>
<div dir="auto">
<br /></div>
<div dir="auto">
4</div>
<div dir="auto">
पानी </div>
<div dir="auto">
विवेक रंजन श्रीवास्तव </div>
<div dir="auto">
<br /></div>
<div dir="auto">
पानी प्यास बुझाता है </div>
<div dir="auto">
पानी ही नहलाता है</div>
<div dir="auto">
पानी से बनता है खाना</div>
<div dir="auto">
पानी ही उपजाता दाना </div>
<div dir="auto">
<br /></div>
<div dir="auto">
पानी मिलता नदियों से </div>
<div dir="auto">
कुओ और तालाबों से </div>
<div dir="auto">
नल में जो पानी है आता</div>
<div dir="auto">
वह आता है बांधों से </div>
<div dir="auto">
<br /></div>
<div dir="auto">
बादल बरसाते हैं पानी </div>
<div dir="auto">
पानी है सबकी जिंदगानी</div>
<div dir="auto">
बिन पानी के शुष्क धरा </div>
<div dir="auto">
पानी ना हो व्यर्थ जरा</div>
<div dir="auto">
<br /></div>
<div dir="auto">
<br /></div>
<div dir="auto">
5 </div>
<div dir="auto">
अच्छा लगता है </div>
<div dir="auto">
विवेक रंजन श्रीवास्तव </div>
<div dir="auto">
<br /></div>
<div dir="auto">
शुद्ध हवा में</div>
<div dir="auto">
सुबह सवेरे </div>
<div dir="auto">
गहरी गहरी </div>
<div dir="auto">
सांसे लेना अच्छा लगता है</div>
<div dir="auto">
<br /></div>
<div dir="auto">
सोकर उठकर</div>
<div dir="auto">
टूथ ब्रश करना </div>
<div dir="auto">
और नहाना अच्छा लगता है </div>
<div dir="auto">
<br /></div>
<div dir="auto">
धुली धुलाई </div>
<div dir="auto">
यूनिफॉर्म में </div>
<div dir="auto">
सही समय पर </div>
<div dir="auto">
शाला आना अच्छा लगता है </div>
<div dir="auto">
<br /></div>
<div dir="auto">
भूख लगे तो </div>
<div dir="auto">
मां के हाथों का </div>
<div dir="auto">
हर खाना अच्छा लगता है</div>
<div dir="auto">
<br /></div>
<div dir="auto">
होमवर्क पूरा </div>
<div dir="auto">
जो हो तो</div>
<div dir="auto">
लोरी और कहानी सुनकर </div>
<div dir="auto">
तब सो जाना अच्छा लगता है</div>
</div>
<div class="adL">
</div>
</div>
</div>
<table class="cf wS" role="presentation"><tbody>
<tr><td class="amq"><img class="ajn bofPge" data-hovercard-id="vivekranjan.vinamra@gmail.com" id=":0_14" name=":0" src="https://plus.google.com/u/0/_/focus/photos/public/AIbEiAIAAABECLOukvPk1omWrQEiC3ZjYXJkX3Bob3RvKihlNmViNDc1YzQzNDllNWYxOTYyNDIyZjAwNTA4YmQzZDIxMzczODg2MAFwIEQ47XEMpXliRMqWHLhdobW20g?sz=32" /></td><td class="amr"><br /></td></tr>
</tbody></table>
</div>
Vivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com18tag:blogger.com,1999:blog-183078677282009535.post-27106623081614612982018-08-19T02:17:00.001-07:002018-08-19T02:17:23.980-07:00चूनर, हरी ओढ़ानी है!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjl05JgABnIgPveBrwZlBOagIyX_gXKAwR6TKgj-mMtgEYH4OlXQIwTuGIS63vEuZ8CyxptfQoJzdpIGYJBRq4aKoyltaWRGzEF7kNSaxJDM6PLBntiwo44fs30o-7pVm5AUWFfgaNBdp1i/s1600/39454039_10212564455281481_8422256324280.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="960" data-original-width="311" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjl05JgABnIgPveBrwZlBOagIyX_gXKAwR6TKgj-mMtgEYH4OlXQIwTuGIS63vEuZ8CyxptfQoJzdpIGYJBRq4aKoyltaWRGzEF7kNSaxJDM6PLBntiwo44fs30o-7pVm5AUWFfgaNBdp1i/s320/39454039_10212564455281481_8422256324280.jpg" width="103" /></a></div>
चूनर, हरी ओढ़ानी है!<br /><br /> विवेक रंजन श्रीवास्तव <br /> <a href="mailto:vivek1959@yahoo.co.in" target="_blank">vivek1959@yahoo.co.in</a><br /><br />रोप पोस कर पौधे, ढ़ेरो हरे भरे <br />वसुंधरा को चूनर, हरी ओढ़ानी है<br /><br />हों संकल्प , हमारे फलीभूत<br />हम प्रयास तो करें, सफलता आनी है <br /><br />जब खरीदा, इक सिलेंडर आक्सीजन <br />तब कहीं वृक्षों की कीमत हमने पहचानी है <br /><br />जहाँ अंकुरण बीज का संभव है<br />ब्रम्हाण्ड में केवल, धरा यही वरदानी है <br /><br />घाटियां गहराईयों की, ऊँचाईयां पाषाण की<br />वादियां सब होंगी हरी, ये हमने ठानी है <br /><br />आसमां से ऊपर , नीले गगन से<br />दिख्खे हरा जो नक्शा, वो हिंदुस्तानी है<br /><br />वृक्ष झीलें लगें, चूनर में टंके सलमा सितारे<br />कुदरत की मस्ती है,ये उसकी कारस्तानी है <br /><br />इंद्र ले सतरंगा धनुष, अगली दफा जब आये तो<br />पाये पहाड़ो पर भी हरियाली, ये ही कहानी है <br /><br />बांस के हरे वन , साल के घने जंगल<br />लगाये होंगे किसने, ये उसकी मनमानी है <br /><br />हरितमा फूल फल लकड़ी और आक्सीजन <br />हुआ हिसाब तब समझ आया कि पौधा दानी है <br /><br />वन हैं तो पशु हैं , पशु हैं तो है प्रकृति <br />काट रहे हैं जो जंगल ये उनकी नादानी है<br /><br />अरसे से रहा है जंगल में जंगल के साथ <br />जंगल के मामले में आदिवासी ज्यादा ग्यानी है<br /><br />पर्यावरण संतुलन, मतलब जलवायु का साथ<br />याद रखना , वृक्ष हैं पर्यावरण है तो पानी है <br /><br />वृक्षारोपण सिर्फ फोटो और अखबारो की खबरें नहीं<br />सूखी जमीन पर हरी चादर सचमुच बिछानी है </div>
Vivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-183078677282009535.post-2262910173324409122012-08-09T22:09:00.001-07:002012-08-09T22:09:56.079-07:00Soak no more the shining IndiaSoak no more the shining India <br />
- Vivek Ranjan Srivastava <br />
India is shining <br />
From Earth to the Moon,<br />
Space to the depths of ocean,<br />
From east to west, north to south,<br />
India is shining. <br />
India is shining Because of its culture, <br />
Heritage and science, <br />
Because of its emotional touch <br />
And universal fraternity <br />
India is shining.<br />
Soak no more the shining India <br />
In the Sections, rules, <br />
Clause and sub clauses of <br />
Constitution and the law<br />
Soak no more shining India<br />
In the sludge of corruption,<br />
Black money, evil, communalism, <br />
Reservations and regionalism, <br />
These are the dirty spots <br />
On The tricolor flag of Mother India <br />
It is our generation <br />
Who have to make India Shining,<br />
THE SHINING INDIA<br />
,Vivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-183078677282009535.post-12936239110973164982012-08-04T07:17:00.000-07:002012-08-04T07:17:11.931-07:00लव मैरिज या अरेंज्ड मैरिज ?लव मैरिज या अरेंज्ड मैरिज ?<br />
<br />
लव तो हो ही जाता है , दो युवाओ में .<br />
<br />
पर शादी केवल लव ही तो नही है !<br />
<br />
सक्सेजफुल शादी के लिये .<br />
<br />
लव के साथ जरूरी होता है , <br />
<br />
कमिटमेंट भी . फेथ भी . म्युचुएल रिस्पेक्ट भी . <br />
<br />
अब परिवार नहीं होते बहुत बड़े , <br />
<br />
भाई बहिन , माँ पिता से <br />
<br />
जो प्रगाढ़ रिलेशन होते हैं ,लड़के या लड़की के , <br />
<br />
वे शादी के बाद भी बने रहें ,<br />
<br />
इसलिये जरूरी होता है एडजसमेंट भी , शादी में. <br />
<br />
मतलब अरेंज्ड लव मैरिज हो <br />
<br />
या <br />
<br />
अरेंज्ड मैरिज तब की जाये <br />
<br />
जब एक दूसरे को समझने लगें पार्टनर्स<br />
<br />
चैटिंग से , मीटिंग से और मोबाइल पर लम्बी लम्बी बातों से <br />
<br />
मतलब शादी हो तब , जब हो जाये लव !Vivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-183078677282009535.post-3339831955877034392012-02-08T18:51:00.001-08:002012-02-08T18:51:44.489-08:00वसीयतमाना<br />
कि मौत पर वश नही अपना<br />
पर प्रश्न है कि<br />
क्या जिंदगी सचमुच अपनी है ?<br />
हर नवजात के अस्फुट स्वर<br />
कहते हैं कि ईश्वर<br />
इंसान से निराश नहीं है<br />
हमें जूझना है जिंदगी से<br />
और बनाना है<br />
जिदगी को जिंदगी<br />
<br />
इसलिये<br />
मेरे बच्चों<br />
अपनी वसीयत में<br />
देकर तुम्हें चल अचल संपत्ति<br />
मैं डालना नहीं चाहता<br />
तुम्हारी जिंदगी में बेड़ियाँ<br />
तुम्हें देता हूँ अपना नाम<br />
ले उड़ो इसे स्वच्छंद/खुले<br />
आकाश में जितना ऊपर उड़ सको<br />
<br />
सूरज की सारी धूप<br />
चाँद की सारी चाँदनी<br />
हरे जंगल की शीतल हवा<br />
और झरनों का निर्मल पानी<br />
सब कुछ तुम्हारा है<br />
इसकी रक्षा करना<br />
इसे प्रकृति ने दिया है मुझे<br />
और हाँ किताबों में बंद ज्ञान<br />
का असीमित भंडार<br />
मेरे पिता ने दिया था मुझे<br />
जिसे हमारे पुरखो ने संजोया है<br />
अपने अनुभवों से<br />
वह सब भी सौंपता हूँ तुम्हें<br />
बाँटना इसे जितना बाँट सको<br />
और सौंप जाना कुछ और बढ़ाकर<br />
अपने बच्चों को<br />
<br />
हाँ<br />
एक दंश है मेरी पीढ़ी का<br />
जिसे मैं तुम्हें नहीं देना चाहता<br />
वह है सांप्रदायिकता का विष<br />
जिसका अंत करना चाहता हूँ मैं<br />
अपने सामने अपने ही जीवन में...<br />
<br />
11 टिप्पणियाँ:<br />
<br />
रचना सागर says<br />
16 जून 2009 2:18 अपराह्न<br />
<br />
हाँ<br />
एक दंश है मेरी पीढ़ी का<br />
जिसे मैं तुम्हें नहीं देना चाहता<br />
वह है सांप्रदायिकता का विष<br />
जिसका अंत करना चाहता हूँ मैं<br />
अपने सामने अपने ही जीवन में...<br />
<br />
बहुत खूब।<br />
<br />
सुषमा गर्ग says<br />
16 जून 2009 2:33 अपराह्न<br />
<br />
वसीयत एसी ही होनी चाहिये इसी से वसुधैव कुटुम्बकम होगा।<br />
<br />
Vijay Kumar Sappatti says<br />
16 जून 2009 2:54 अपराह्न<br />
<br />
bahut sundar abhivyakti ... aur in fact yahi aaj ka sahi nirnay honga ...<br />
<br />
badhai aur aabhar...<br />
<br />
vijay<br />
<br />
दिगम्बर नासवा says<br />
16 जून 2009 4:04 अपराह्न<br />
<br />
हाँ<br />
एक दंश है मेरी पीढ़ी का<br />
जिसे मैं तुम्हें नहीं देना चाहता<br />
वह है सांप्रदायिकता का विष<br />
<br />
<br />
kitnaa दर्द chipa है........... इस vasiyat में.......... लाजवाब लिखा<br />
<br />
अभिषेक सागर says<br />
16 जून 2009 5:01 अपराह्न<br />
<br />
बहुत अच्छी कविता है, बधाई।<br />
<br />
बेनामी says<br />
16 जून 2009 5:12 अपराह्न<br />
<br />
Nice Poem, Thanks.<br />
<br />
Alok Kataria<br />
<br />
रंजना says<br />
16 जून 2009 5:20 अपराह्न<br />
<br />
Sahi kaha...<br />
Sundar rachna...<br />
<br />
महेन्द्र मिश्र says<br />
16 जून 2009 9:47 अपराह्न<br />
<br />
सुन्दर अभिव्यक्ति से लबरेज रचना है . आभार.<br />
<br />
राजीव तनेजा says<br />
17 जून 2009 7:54 पूर्वाह्न<br />
<br />
समय की ज़रूरत भी यही है.....बढिया रचना...बधाई<br />
<br />
राजीव तनेजा says<br />
17 जून 2009 7:55 पूर्वाह्न<br />
<br />
समय की ज़रूरत भी यही है.....बढिया रचना...बधाई<br />
<br />
लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` says<br />
17 जून 2009 6:47 अपराह्न<br />
<br />
एक सुँदर कृति !<br />
- लावण्याVivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-183078677282009535.post-52052405438491096622011-11-12T07:12:00.000-08:002011-11-12T07:12:16.636-08:00नई पीढ़ी तक गीता उसी काव्यगत व भावगत आनन्द के साथ पहुंच सके ......श्रीमद्भगवत गीता विश्व का अप्रतिम ग्रंथ है ! <br />
धार्मिक भावना के साथ साथ दिशा दर्शन हेतु सदैव पठनीय है ! <br />
जीवन दर्शन का मैनेजमेंट सिखाती है ! पर संस्कृत में है ! <br />
हममें से कितने ही हैं जो गीता पढ़ना समझना तो चाहते हैं पर संस्कृत नहीं जानते ! <br />
मेरे ८४ वर्षीय पूज्य पिता प्रो सी बी श्रीवास्तव विदग्ध जी संस्कृत व हिन्दी के विद्वान तो हैं ही , बहुत ही अच्छे कवि भी हैं , उन्होने महाकवि कालिदास कृत मेघदूत तथा रघुवंश के श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद किये , वे अनुवाद बहुत सराहे गये हैं . हाल ही उन्होने श्रीमद्भगवत गीता का भी श्लोकशः पद्यानुवाद पूर्ण किया . जिसे वे भगवान की कृपा ही मानते हैं . <br />
उनका यह महान कार्य http://vikasprakashan.blogspot.com/ पर सुलभ है . रसास्वादन करें . व अपने अभिमत से सूचित करें . कृति को पुस्तकाकार प्रकाशित करवाना चाहता हूं जिससे इस पद्यानुवाद का हिन्दी जानने वाले किन्तु संस्कृत न समझने वाले पाठक अधिकतम सदुपयोग कर सकें . नई पीढ़ी तक गीता उसी काव्यगत व भावगत आनन्द के साथ पहुंच सके . <br />
प्रसन्नता होगी यदि इस लिंक का विस्तार आपके वेब पन्ने पर भी करेंगे . यदि कोई प्रकाशक जो कृति को छापना चाहें , इसे देखें तो संपर्क करें ..०९४२५८०६२५२, विवेक रंजन श्रीवास्तवVivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-183078677282009535.post-82933042137112653852011-11-10T20:39:00.001-08:002011-11-10T20:39:18.477-08:00हो सहकार , तो उद्धार !हो सहकार , तो उद्धार ! <br />
<br />
विवेक रंजन श्रीवास्तव <br />
ओ.बी. 11, एमपीईबी कालोनी<br />
रामपुर, जबलपुर ४८२००८<br />
मो.9425806252<br />
<br />
<br />
कुछ तुम करो , कुछ हम करें <br />
संग साथ सब बढ़ें !<br />
<br />
व्यक्ति हो तो एक हो , समूह में ही शक्ति है <br />
काम बांट कर करें ! <br />
<br />
कण स्वतंत्र धूल है ,मिलें , सनें और बंधें <br />
मूर्त रूप हम गढ़ें !<br />
<br />
बिंदु बिंदु गुम हुये , ढ़ूंढ़ने से न मिलें <br />
मिल गये तो चित्र हैं !<br />
<br />
हर्फ हर्फ अर्थ बिन , बस महज हर्फ हैं <br />
संग हुये तो शब्द हैं , वाक्य और निबंध हैं !<br />
<br />
अलग हैं तो पृष्ठ हैं , फूंकने से जो उड़ें<br />
किताब क्यूं न हम बनें ?Vivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-183078677282009535.post-10014772594316911632011-08-17T21:47:00.000-07:002011-08-17T21:47:39.833-07:00जिस रिश्ते की डोर भावना, उससे हजारे ,हमारे अन्नाअन्ना <br />
<br />
विवेक रंजन श्रीवास्तव <br />
ओ बी ११ विद्युत मण्डल कालोनी रामपुर <br />
जबलपुर <br />
<br />
इस पीढ़ी के देश प्रेम के जज्बे का , नाम बने अन्ना <br />
भारत की भावनाओ का , अभिमान बने अन्ना <br />
<br />
बापू ने दुनियां को अहिंसा की , राह थी दिखाई ,उसी <br />
सत्य और सत्याग्रह का ,सीधा सा पैगाम बने अन्ना <br />
<br />
हमने ही चुना जिनको , वे ही नहीं सुनते जब ,तो<br />
जन मन की भावनाओ का , संग्राम बने अन्ना <br />
<br />
सत्तर की उमर में भी ,किसी नौजवां से कम नहीं <br />
निस्वार्थ आंदोलन के लिये , तुम्हें प्रणाम है अन्ना<br />
<br />
बहुत कर चुके वो , लोकतंत्र में , देश का दोहन <br />
भ्रष्टतंत्र का शुद्धिकरण है जरूरी, अंजाम हैं अन्ना <br />
<br />
घुप अंधेरी रात को , रोशन करने की ताकत है हममें <br />
जनता शमां है, मशाल भी, और सुनहरी शाम हैं अन्ना<br />
<br />
गांधी हमारे बापू ,चाचा हैं नेहरू , और टेरेसा बनी मदर <br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://1.bp.blogspot.com/-frK16F7e2Yk/TkyZYVsNL1I/AAAAAAAAA1o/YLQbls0OMlc/s1600/hazare.jpg" imageanchor="1" style="clear:left; float:left;margin-right:1em; margin-bottom:1em"><img border="0" height="176" width="176" src="http://1.bp.blogspot.com/-frK16F7e2Yk/TkyZYVsNL1I/AAAAAAAAA1o/YLQbls0OMlc/s200/hazare.jpg" /></a></div><br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
Vivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-183078677282009535.post-57682197746066104962011-07-30T09:35:00.001-07:002011-07-30T09:35:38.694-07:00अस्पतालअस्पताल<br />
<br />
विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र<br />
जनसंपर्क अधिकारी एवं अति. अधीक्षण यंत्री ,ओ.बी. 11, एमपीईबी कालोनी<br />
रामपुर, जबलपुर (मप्र) 482008<br />
मो. 9425806252<br />
<br />
जिदंगी कैद है यहां<br />
वेंटीलेटर में।<br />
<br />
आक्सीजन सिलेंडर <br />
में भरी है सांसे।<br />
<br />
उलटी लटकी है जिदंगी<br />
सिलाइन, ग्लूकोज या खून की बोतलों में<br />
<br />
रंग बिरंगे कैप्सूल के चिकने आवरण में<br />
सिमटी हुई है दवा की सारी कडवाहट<br />
जैसे स्वच्छ ओवर कोट में हो पैरा मेडिकल स्टाफ<br />
<br />
शुगर कोटेड है टेबलेट्स<br />
किसी सुंदर सी नर्स की मुस्कान की तरह<br />
पर जिदंगी की जद्दोहद बहुत कडवी है<br />
<br />
ए.सी. कमरो की दिवारों पर कांच <br />
बडी मंहगी होती है मषीनों में शरीर के भीतर तक जांच <br />
<br />
मांस के लोथडे में इंजेक्षन की चुभन<br />
जाने कैसी तो होती है अस्पताल की गंध <br />
<br />
धवल सफेद लिबासों में डाक्टर<br />
कुछ बगुले, चंद हंस<br />
गले मे झूलता स्टेथेस्कोप क्या सचमुच सुन पाता है<br />
कितना किसका जिंदगी से नाता है।Vivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-183078677282009535.post-82708240219935096822010-12-28T18:31:00.001-08:002010-12-28T18:31:27.913-08:00और यह बात बढ़ाई हमने .....श्रद्धा जैन गजल के सुंदर शब्दो की हमसफर हैं ....उनकी ये पंक्तियां फेस बुक पर ..<br />
<br />
कुछ बात तो ज़रूर थी, मिलने के बाद अब तलक<br />
खुद की तलाश में हूँ मैं, लेकिन मेरे निशाँ नहीं<br />
दुश्मन बना जहान ये, ऐसी फिज़ा बनी ही क्यूँ<br />
मेरे तो राज़, राज़ हैं, कोई भी राज़दां नहीं<br />
<br />
और यह बात बढ़ाई हमने .....<br />
<br />
गुमशुदा कहो ना उसे , मिल ही जायेगा फेस बुक में <br />
वो शख्स भी अपनों सा ही है, कोई शहनशां नहींVivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-183078677282009535.post-61777462815909823372010-12-19T03:42:00.000-08:002010-12-19T04:03:44.386-08:00फरमाईश पर कविता लिखने का प्रोग्राम जारी है इस बार......बिगबासफरमाईश पर कविता लिखने का प्रोग्राम जारी है पिछली पोस्ट पर टिप्पणी में बिगबास की फरमाईश पर बिगबास पर यह रचना...<br />
<br />
<a href="https://www.blogger.com/comment.g?blogID=183078677282009535&postID=3903738337904630351"></a><br />
<br />
<br />
बिगबास <br />
<br />
विवेक रंजन श्रीवास्तव <br />
<br />
इस हमाम में सब नंगे हैं दिखलाता यह सच बिगबास<br />
मन की परतो के भीतर की , तह दिखलाता है बिगबास <br />
<br />
जनहित याचिकायें भी लग गईं टीआरपी पर बनी हई है <br />
हर कोई जब करे बुराई , कौन देखता फिर बिगबास ? <br />
<br />
स्वेता सीमा वीणा अस्मित, किस्मत सबकी लगी दांव पर <br />
प्रश्न यही करते हैं खुद से ,कब तक किसका घर बिगबास<br />
<br />
लिये करोड़ों तब आये हैं , करते हैं पर बस बकवास <br />
सट्टा इस पर लगा हुआ है , जीतेगा अब कौन बिगबास <br />
<br />
कुछ घर से बाहर हैं हो गये , कुछ कैमरे में कैद हो गये <br />
चौथी बार रंग कलर्स पर , दिखा रहा सीरियल बिगबासVivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-183078677282009535.post-39037383379046303512010-12-14T08:36:00.000-08:002010-12-15T23:38:21.264-08:00दीदी जी क्या रविवार को भी हम लोगो को स्कूल से खाना नही मिल सकता ?<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiYMyA9XqNOTj1U2ngMRNGIX43QwK-HgHIHSq7xn1U8bPl9mL1ZrdkfRgFQW_beMnQQ9Nlt18wXJA9IyQhGnOsZ2wYZwNdg4UAvmFWk9cLMPu67MTNMdukLcmzIAU0vzaY_3-OauVFmwv_2/s1600/Picture+046.jpg" imageanchor="1" style="clear:left; float:left;margin-right:1em; margin-bottom:1em"><img border="0" height="200" width="150" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiYMyA9XqNOTj1U2ngMRNGIX43QwK-HgHIHSq7xn1U8bPl9mL1ZrdkfRgFQW_beMnQQ9Nlt18wXJA9IyQhGnOsZ2wYZwNdg4UAvmFWk9cLMPu67MTNMdukLcmzIAU0vzaY_3-OauVFmwv_2/s200/Picture+046.jpg" /></a></div><br />
<br />
"अक्षय पात्र " की सफलता की अशेष मंगलकामनायें ...<br />
<br />
अनुव्रता श्रीवास्तव <br />
बी. ई . कम्प्यूटर्स <br />
ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर <br />
<br />
पिछले रविवार की बात है , मैं छुट्टी मनाने के मूड में थी बगीचे में धूप का आनंद ले रहा थी और मम्मी की जल्दी नहा लेने की हिदायत को अनसुना करती अखबार में भ्रष्टाचार की बड़ी बड़ी खबरो के साथ चाय की छोटी छोटी चुस्कियां ले रही थी ,तभी हमारी काम वाली अपनी बच्ची सोनाली के साथ आई . काम वाली तो भीतर काम में व्यस्त हो गई और मैं उसकी बेटी सोनाली से जो अखबार में झांक रही थी , बतियाने लगी . मैने सोनाली से उसकी पढ़ाई की बातें की , मुझे ज्ञात हुआ कि उसके स्कूल में उसे और क्लास की सभी बच्चियों को साइकिल मिली थी ,किताबें भी मुफ्त मिली थी . दोपहर में उनको भोजन भी मिलता है , कभी दाल दलिया , कभी सब्जी चावल या अन्य कुछ . जब सोनाली ने पूछा कि , दीदी जी क्या रविवार को भी हम लोगो को स्कूल से खाना नही मिल सकता ? तब मुझे मिड डे मील की योजना का महत्व समझ आया .मेरे मन में भीतर तक सोनाली का प्रश्न गूंज रहा था ,दीदी जी क्या रविवार को भी हम लोगो को स्कूल से खाना नही मिल सकता ? <br />
लंच पर मैने यह बात डाइनिंग टेबल पर छेड़ी तो पापा ने बतलाया कि शायद तब वे कक्षा दूसरी में पढ़ते थे , एक दिन उनके स्कूल में मिल्क पाउडर से बना दूध कक्षा के सभी बच्चो को दिया जा रहा था ,पापा ने बताया कि तब तो उन्हें समझ नही आया था कि ऐसा क्यो किया गया था ? उन्होंने बताया कि संभवतः वह यूनेस्को का कोई कार्यक्रम था जिसके अंतर्गत बच्चो के स्वास्थ्य की बेहतरी के लिये स्कूल में एक दिन वह दूध वितरण किया गया रहा होगा ! <br />
तेजी से बढ़ती आबादी भारत की सबसे बड़ी समस्या है . इसके चलते बच्चो में कुपोषण के आंकड़े चिंताजनक स्तर पर हैं .विभिन्न विश्व संगठन , केंद्र व राज्य सरकारें तो अपने अपने तरीको से महिला एवं बाल कल्याण विभाग , स्वास्थ्य विभाग , समाज कल्याण विभाग आदि के माध्यम से बच्चो के लिये अनेकानेक योजनाओ के द्वारा जन कल्याणकारी योजनायें चला ही रही हैं . किन्तु सुरसा के मुख सी निरंतर विशाल होती जाती यह आहार समस्या बहुत जटिल है , और इसे हल करने में हम सबकी व्यैक्तिक व सामाजिक स्तर पर मदद जरूरी है . केवल सरकारो पर यह जबाबदारी छोड़कर हम निश्चिंत नही हो सकते , यह तथ्य मैं तब बहुत अच्छी तरह समझ चुकी हूं जब हमारे घर की कामवाली की बेटी सोनाली ने मुझसे बहुत मासूमयित से पूछा था दीदी जी क्या रविवार को भी हम लोगो को स्कूल से खाना नही मिल सकता ? हर धर्म हमें यही शिक्षा देता है और सभ्य समाज का यही तकाजा है कि जब तक पड़ोसी भूखा हो हमें चैन की नींद नही सोना चाहिये . फिर यह तो नन्हें बच्चो की भूख का सवाल है .मंदिर , गुरुद्वारे या अन्य धार्मिक स्थलो पर गरीबो की मदद करके शायद हम अपने आप को ही खुशी देते हैं. हममें से अनेक साधन संपन्न लोग सहज ही बच्चो को भोजन कराने का पुण्य कार्य करना चाहें . जन्मदिन , बुजुर्गो की स्मृति में या अन्य अनेक शुभ अवसरो पर लोग भोज के आयोजन करते भी हैं , पर व्यक्तिगत रूप से किसी बच्चे को भोजन कराने की नियमित जबाबदारी उठाना कठिन है .यहीं "अक्षयपात्र" जैसी सामाजिक संस्था का महत्व स्थापित होता है . "अक्षयपात्र फाउण्डेशन" जैसी अशासकीय , लाभ हानि से परे समाजसेवी संस्थाओ को दान देकर हम अपने दिये गये रुपयो के , उसी प्रयोजन हेतु सदुपयोग को सुनिश्चित कर सकते हैं . <br />
बंगलोर की "अक्षयपात्र फाउण्डेशन" आज प्रतिदिन 12,53,266 बच्चो को दोपहर में उनके स्कूल में भोजन की सुव्यवस्था हेतु राष्ट्रीय व अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत हो चुका है . वर्ष जून २००० से जब सरकार ने भी स्कूलों में दोपहर के भोजन की परियोजना प्रारंभ नही की थी तब से "अक्षयपात्र फाउण्डेशन" यह योजना चला रहा है , बाद में सरकारी स्तर पर मिड डे मील कार्यक्रम के प्रारंभ होने पर सहयोगी के रूप में , बृहद स्तर पर "अक्षयपात्र फाउण्डेशन" यह महान कार्य अनवरत रूप से कर रहा हैं . शैक्षणिक गतिविधियो से जुड़ी अन्य अनेक योजनायें जैसे विद्या अक्षय पात्र , अक्षय लाइफ स्किल , लीडरसिप डेवलेपमेंट आदि अनेक योजनायें भी यह संस्था चला रही है . दानदाताओ की सुविधा हेतु एस एम एस या मोबाइल पर सूचना की व्यवस्था की गई है , यदि चाहें तो सूचना मिलने पर दानदाता के घर से ही दान राशि एकत्रित करने हेतु संस्था के वालण्टियर पहुंच सकते हैं .संस्था का कार्य क्षेत्र देश के ८ राज्यो तक विस्तारित हो चुका है व निरंतर विकासशील है . <br />
हमारा कर्तव्य है कि हम "अक्षयपात्र फाउण्डेशन" जैसी संस्था से किसी न किसी रूप में अवश्य ही जुड़ें , दानदाता के रूप में , वालण्टियर के रूप में , प्रचारक के रूप में या लेखक के रूप में ... आइये हम भी अपना योगदान स्वयं ही निर्धारित करें , और बच्चो की भूख मिटाने के महायज्ञ में अपनी आहुती सुनिश्चित करें .आप इस लिंक पर अपना सहयोग दे सकते हैं . <br />
<br />
<a href="http://www.akshayapatra.org/online-donations">http://www.akshayapatra.org/online-donations</a><br />
<br />
अंत में यही प्रार्थना और संकल्प कि ... <br />
<br />
रिक्त न हो ,भरा रहे ,सदा हमारा अक्षय पात्र<br />
हर बच्चे का पेट भरे सदा हमारा अक्षय पात्र<br />
<br />
जिस तरह द्रौपदी को सदा भोजन से परिपूरित , भरा रहने वाला अक्षयपात्र वरदान स्वरूप प्राप्त था , देश के जरूरतमंद बच्चो को भी "अक्षयपात्र फाउण्डेशन" के रूप में वही वरदान सुलभ हुआ है , ईश्वर से संस्था की निरंतर सफलता की कामना है .Vivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-183078677282009535.post-10739499983198030472010-12-11T19:20:00.001-08:002010-12-12T05:30:51.251-08:00वाचस्पति जी की फरमाइश पर , लिखने बैठा था कविता ,गजल बन गई है लगता, लिखता क्या कविता पर कवितामजा आ गया ... सुबह पोस्ट डालकर टूर पर निकल गया था अभी लौटकर ब्लाग देखा , कविता करने के लिये विषय मिला है कविता .. बस लिख डाला है कुछ ..बताइये कैसी लगी रचना ?कैसा लगा यह नव प्रयोग ?<br />
<br />
कविता <br />
<br />
विवेक रंजन श्रीवास्तव "विनम्र "<br />
<br />
कोमल हृदय तरंगो की , सरगम होती है कविता<br />
शीर्षक के शब्दो को देती , अर्थ सदा पूरी कविता<br />
<br />
सजल नयन और तरल हृदय ,परपीड़ा से हो जाता है <br />
हम सब में ही छिपा कवि है ,बता रही हमको कविता<br />
<br />
छंद बद्ध हो या स्वच्छंद हो , अभिव्यक्ति का साधन है <br />
मन के भावो का शब्दो में , सीधा चित्रण है कविता<br />
<br />
कोई दृश्य , जिसे देखकर ,भी न देख सब पाते हैं <br />
कवि मन को उद्वेलित करता , तब पैदा होती कविता<br />
<br />
कवि की उस पीड़ा का मंथन , शब्द चित्र बन जाता है <br />
दृश्य वही देखा अनदेखा , हमको दिखलाती कविता <br />
<br />
लेख, कहानी, व्यंग विधायें, लिखने के हथियार बहुत <br />
कम शब्दो में गाते गाते , बात बड़ी कहती कविता <br />
<br />
वाचस्पति जी की फरमाइश पर , लिखने बैठा था कविता <br />
गजल बन गई है लगता, लिखता क्या कविता पर कविता <br />
<br />
मासूम जी ! मासूमियत ही , कवियो की जागीर है <br />
बम के धमाको,आतंक के माहौल में,शांति संदेशा है कविताVivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-183078677282009535.post-10659094543109617562010-12-10T18:48:00.001-08:002010-12-10T18:48:36.027-08:00आप विषय दीजीये मैं लिखूंगा कविता ...कल ही पढ़ियेगा उसे और बताइयेगा केसी लगी ..आप विषय दीजीये मैं लिखूंगा कविता ... <br />
समस्या पूर्ती हमारी पुरानी विधा है ...<br />
इस ब्लाग को आपके लिये और भी पठनीय बनाने हेतु मेरा आग्रह है कि आप विषय दीजीये मैं लिखूंगा कविता ... <br />
.Vivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-183078677282009535.post-90808927203775179232010-09-25T20:30:00.001-07:002010-09-25T20:30:31.701-07:00हमारे मंदिर और मस्जिद को देने के लिये फूल , सुगंध और सायारोपना है मीठी नीम अब हमें <br />
<br />
कभी देखा है आपने किसी पेड़ को मरते हुये ?<br />
देखा तो होगा शायद <br />
पेड़ की हत्या , पेड़ कटते हुये <br />
<br />
<br />
हमारी पीढ़ी ने देखा है एक <br />
पुराने , कसैले हो चले <br />
किंवाच और बबूल में तब्दील होते <br />
कड़वे बहुत कड़वे नीम के ठूंठ को <br />
ढ़हते हुये <br />
<br />
<br />
<br />
हमारे मंदिर और मस्जिद <br />
को देने के लिये <br />
फूल , सुगंध और साया <br />
रोपना है आज हमें <br />
एक हरा पौधा <br />
जो एक साथ ही हो <br />
मीठी नीम , सुगंधित गुलाब और बरगद साVivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-183078677282009535.post-56356631573046112432010-07-20T21:42:00.001-07:002010-07-20T21:42:39.060-07:00बरसात की बातबरसात की बात <br />
<br />
<br />
विवेक रंजन श्रीवास्तव <br />
ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी <br />
रामपुर , जबलपुर <br />
<br />
<br />
लो हम फिर आ गये <br />
बरसात की बात करने ,पावस गोष्ठी में <br />
जैसे किसी महिला पत्रिका का <br />
वर्षा विशेषांक हों , बुक स्टाल पर <br />
ये और बात है कि <br />
बरसात सी बरसात ही नही आई है <br />
अब तक <br />
बादल बरसे तो हैं , पर वैसे ही <br />
जैसे बिजली आती है गांवो में <br />
जब तब<br />
<br />
हर बार <br />
जब जब <br />
घटायें छाती है <br />
मेरा बेटा खुशियां मनाता है <br />
मेरा अंतस भी भीग जाता है <br />
और मेरा मन होता है एक नया गीत लिखने का <br />
मौसम के इस बदलते मिजाज से <br />
हमारी बरसात से जुड़ी खुशियां बहुगुणित हो <br />
किश्त दर किश्त मिल रही हैं हमें <br />
क्योकि बरसात वैसे ही बार बार प्रारंभ होने को ही हो रही है <br />
जैसे हमें एरियर <br />
मिल रहा है ६० किश्तों में <br />
<br />
मुझे लगता है <br />
अब किसान भी<br />
नही करते<br />
बरसात का इंतजार उस व्यग्र तन्मयता से <br />
क्योंकि अब वे सींचतें है खेत , पंप से <br />
और बढ़ा लेते हैं लौकी <br />
आक्सीटोन के इंजेक्शन से<br />
<br />
देश हमारा बहुत विशाल है <br />
कहीं बाढ़ ,तो कहीं बरसात बिन <br />
हाल बेहाल हैं <br />
जो भी हो <br />
पर <br />
अब भी<br />
पहली बरसात से <br />
भीगी मिट्टी की सोंधी गंध, <br />
प्रेमी मन में बरसात से उमड़ा हुलास<br />
और झरनो का कलकल नाद <br />
उतना ही प्राकृतिक और शाश्वत है<br />
जितना कालिदास के मेघदूत की रचना के समय था <br />
और इसलिये तय है कि अगले बरस फिर <br />
होगी पावस गोष्ठी <br />
और हम फिर बैठेंगे <br />
इसी तरह <br />
नई रचनाओ के साथ .Vivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-183078677282009535.post-41450287046377996512010-03-04T21:18:00.000-08:002010-03-04T21:21:25.990-08:00बच्चो के सपनो में,परियों की दुआ दीजियेबच्चो के सपनो में,परियों की दुआ दीजिये<br /><br />विवेक रंजन श्रीवास्तव <br />ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी <br />रामपुर <br />जबलपुर <br /><br />बच्चो के सपनो में,परियों की दुआ दीजिये<br />नींद चैन की मेरे बच्चों की लौटा दीजिये <br /><br />प्यार का पाठ पढ़ना , यदि अपराध हो <br />तो सबसे पहले हमको ही सजा दीजिये <br />नहा आये हैं ,पहने हैं कपड़े झक सफेद <br />गुलाल प्यार का थोड़ा सा लगा दीजिए<br /><br />रोशनी की किरण खुद ही चली आयेगी <br />छेद छोटा सा छत में , बस करा दीजिये <br />फैला रहा है मुस्कराकर, खुश्बू हवाओ में <br />इस फूल के पौधे चार, और लगा दीजिये <br /><br />न बनें नक्सलवादी , न कोई आत्मघाती<br />इंसानी नस्ल में ,आदमी ही रहने दीजियेVivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-183078677282009535.post-10243391080057471932009-12-29T19:42:00.000-08:002009-12-29T19:46:46.712-08:00हर सुबह सो रहे हैं, रतजगा हो रहा है,हर सुबह सो रहे हैं, रतजगा हो रहा है,<br /><br /> विवेकरंजन श्रीवास्तव<br /> <br /> मो.नं. 9425484452<br /><br /><br />हर सुबह सो रहे हैं, रतजगा हो रहा है,<br />ये कैसा चलन है, ये क्या हो रहा है।<br /><br /><br />गुनहगार बे खौफ, बेगुनाह फंस रहा है,<br />ऐसा इंसाफ अक्सर, ये क्या हो रहा है ।<br /><br />खुद बखुद हुस्न बेहया ,बेपर्दा हो रहा है,<br />कैसा बेट़ब है फैशन, ये क्या हो रहा है।<br /><br />दूध तक है नकली, असल सो रहा है,<br />सामान पैकेट में हो तो ,सब बिक रहा है।<br /><br />तालीम की सज , गई हैं दुकानें<br />पिता मंहगी फीस का कर्ज ढ़ो रहा है ।<br />ये कैसा चलन है, ये क्या हो रहा है।Vivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-183078677282009535.post-21236609641380070912009-09-15T20:58:00.001-07:002009-09-15T20:58:34.637-07:00मां ! क्षमा करोमन मेरा मैला , फिर फिर हो जाता है <br />क्षमा शील हो तुम मां <br />मां ! क्षमा करो <br /><br /><br />मैं दुनियावी , फिर फिर अपराध किये जाता हूं <br />दया वान हो तुम मां <br />मां ! दया करो <br /><br />व्रत, त्याग, तपस्या सधती न मुझे , फिर मंदिर आता हूं <br />बेटा तो तेरा ही हूं मां <br />मां कृपा करो <br /><br /><br /><br />विवेक रंजन श्रीवास्तव विनम्र <br />ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर म.प्र. ४८२००८ <br /><br />मो. ००९४२५८०६२५२Vivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-183078677282009535.post-29537081761714421962009-09-15T20:57:00.001-07:002009-09-15T20:57:56.708-07:00देवी गीतदेवी गीत <br />प्रो सी बी श्रीवास्तव विदग्ध <br />ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर ,जबलपुर म.प्र.<br /><br /><br /><br />लगता अच्छा बहुत है यहां मां ! दूर दुनियां से मंदिर में आ के <br />करके दर्शन तुम्हारे , तुम्हें मां , अपने मन की व्यथा सब सुना के <br /><br />शांति पाते हैं वे सब दुखी जन , जो भी आते शरण मां तुम्हारी <br />कही सुख शांति मिलती नही है, देख ली खूब दुनियां ये सारी <br />बेसहारों को और चाहिये क्या ? मां , तुम्हारी कृपा दृष्टि पा के <br /><br /><br />जहां तक यहां जाती निगाहें , दिखता रमणीक वातावरण है <br />बांटती मधुर आलोक सबको , कलश की ज्योति शुभ किरण है <br />सभी आनन्द भरपूर पाते , छबि तुम्हारी हृदय में बसा के <br /><br /><br />मन में श्रद्धा औ" आशा संजोये, जग से हारे या किस्मत के मारे <br />हाथ में लिये पूजा की थाली , आ के दरबार में मां तुम्हारे <br />तृप्ति पाते हैं जल धूप चंदन फूल फल दीप सब कुछ चढ़ा के <br /><br />जगाते नये आभास पावन , पूजा व्रत सात्विकी भावनायें <br />मधुर विश्वास देती हैं मन को , समर्पण भाव की प्रार्थनायें <br />प्रेम पुलकित हो जाता हृदय है , माता अनुराग के गीत गा के <br /><br />लगता अच्छा बहुत है यहां मां ! दूर दुनियां से मंदिर में आ के <br />करके दर्शन तुम्हारे , तुम्हें मां , अपने मन की व्यथा सब सुना केVivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-183078677282009535.post-61892969704956810702009-03-28T21:11:00.000-07:002009-04-13T06:46:11.017-07:00गोकुल तुम्हें बुला रहा हे कृष्ण कन्हैया ।प्रो सी बी श्रीवास्तव<br /> सी ६ विद्युत मण्डल कालोनी <br /> रामपुर जबलपुर<br /><br />गोकुल तुम्हें बुला रहा हे कृष्ण कन्हैया ।<br />वन वन भटक रही हैं ब्रजभूमि की गैया ।<br />दिन इतने बुरे आये कि चारा भी नही है<br />इनको भी तो देखो जरा हे धेनू चरैया ।।१।।<br /><br />करती हे याद देवी माँ रोज तुम्हारी <br />यमुना का तट औ. गोपियाँ सारी ।<br />गई सुख धार यमुना कि उजडा है वृन्दावन <br />रोती तुम्हारी याद में नित यशोदा मैया ।।२।।<br /><br />रहे गाँव वे , न लोग वे , न नेह भरे मन<br />बदले से है घर द्वार , सभी खेत , नदी , वन।<br />जहाँ दूध की नदियाँ थीं , वहाँ अब है वारूणी<br />देखो तो अपने देश को बंशी के बजैया ।।३।।<br /><br />जनमन न रहा वैसा , न वैसा है आचरण <br />बदला सभी वातावरण , सारा रहन सहन ।<br />भारत तुम्हारे युग का न भारत है अब कहीं<br />हर ओर प्रदूषण की लहर आई कन्हैया ।।४।।<br /><br />आकर के एक बार निहारो तो दशा को<br />बिगड़ी को बनाने की जरा नाथ दया हो ।<br />मन मे तो अभी भी तुम्हारे युग की ललक है <br />पर तेज विदेशी हवा मे बह रही नैया ।।५।।Vivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-183078677282009535.post-72745189231953829332009-03-28T21:07:00.000-07:002009-04-13T06:46:11.031-07:00आये हैं इस संसार में दिनचार के लिएआये हैं इस संसार में दिनचार के लिए<br /> प्रो सी बी श्रीवास्तव<br /> सी ६ विद्युत मण्डल कालोनी <br /> रामपुर जबलपुर<br /><br />सब जी रहे हैं जिन्दगी पीरवार के लिए<br />पर मन में भारी प्यास लिए प्यार के लिए ।<br />सुख दिखता तो जरूर है पर िमलता नही है<br />शायद मिले जो हम जिये संसार के लिए।।1।।<br /><br /> हर दिन यहॉ हर एक की नई भाग दौड है<br /> औरो से अधिक पाने की मन मे होड है।<br /> सुख से सही उसका नही कोई है वास्ता <br /> सारी यह आपाधापी है अधिकार के लिए।।2।।<br /><br />अधिकार ने सबको सदा पर क्षोभ दिया है<br />जिसको मिला उसको यहॉ बेचैन किया है।<br />अिधेकार और धन से कभी भी भर न सका मन <br />रहा हट नई चाहत व्यापार के लिए ।।3।।<br /><br /> भरमाया सदा मोह ने माया ने फंसाया <br /> खुद के सिवा कोई कभी कुछ काम न आया <br /> रातें रही हों चॉदनी या घोर अंधरी<br /> व्याकुल रहा है घर के ही विस्तार के लिए।।4।।<br /><br />सचमुच यहॉ पर आदमी गुमराह बहुत है<br />कर पाता है थोडा सा ही करने को बहुत हैं ।<br />हम जो भी करे नाथ ! हमें इतना ध्यान हो <br />आये हैं इस संसार में दिन चार के लिए।।5।।<br /><br /> हमें दीजिए भगवान वह सामथ्र्य और ज्ञान <br /> रहे शुध्द जिससे भावना साित्वक रहे विधान <br /> कुछ ऐसा बने हमसे जो हो जग मे काम काVivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-183078677282009535.post-60414748271553714292009-03-28T21:05:00.000-07:002009-04-13T06:46:11.038-07:00जब अंधेरा हो घना घटायें घिरेंदीप ऐसे जलायें इस दिवाली की रात<br />कि जो देर तक,दूर तक उजाला करें <br />हो जहाँ भी, या कि जिस राह पर <br />पथिक को राह दिखला सहारा करें<br />जब अंधेरा हो घना घटायें घिरें<br />राह सूझे न मन में बढ़ें उलझने<br />देख सूनी डगर, डर लगे तन कंपे <br />तय न कर पाये मन क्या करें न करें<br />तब दे आशा जगा आत्म विश्वास फिर<br />उसके चरणो की गति को संवांरा करें<br />दीप ऐसे जलायें इस दिवाली की रात <br />कि जो देर तक, दूर तक उजाला करें <br />हर घड़ी बढ़ रही हैं समस्यायें नई<br />अचानक बेवजह आज संसार में <br />हो समस्या खड़ी कब यहाँ कोई बड़ी<br />समझना है कठिन बड़ा व्यवहार में<br />दीप ऐसे हो जो दें सतत रोशनी<br />पथिक की भूल कोई न गवारा करें<br />दीप ऐसे जलायें इस दिवाली की रात <br />कि जो देर तक, दूर तक उजाला करें <br />रास्ते तो बहुत से नये बन गये<br />पर बड़े टेढ़े मेढ़े हैं, सीधे नहीं <br />मंजिलों तक पहुंचने में हैं मुश्किलें<br />होती हारें भी हैं, सदा जीतें नहीँ <br />जूझते खुद अंधेरों से भी रात में<br />पथ दिखायें जो न हिम्मत हारा करें<br />दीप ऐसे जलायें इस दिवाली की रात <br />कि जो देर तक, दूर तक उजाला करें <br /><br />--प्रो.सी.बी.श्रीवास्तवVivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-183078677282009535.post-69311247566208251202009-03-28T21:00:00.001-07:002009-04-13T06:46:11.050-07:00सिध्दिदायक गजवदनसिध्दिदायक गजवदन<br /><br />जय गणेश गणाधिपति प्रभु , सिध्दिदायक , गजवदन<br />विघ्ननाशक दष्टहारी हे परम आनन्दधन ।।<br />दुखो से संतप्त अतिशय त्रस्त यह संसार है<br />धरा पर नित बढ़ रहा दुखदायियो का भार है ।<br />हर हृदय में वेदना , आतंक का अधियार है<br />उठ गया दुनिया से जैसे मन का ममता प्यार है ।।<br />दीजिये सब्दुध्दि का वरदान हे करूणा अयन ।।१।।Vivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com0