वाह , काश ,उफ , ओह
वे शब्द हैं
जो
अपने आकार से
ज्यादा , बहुत ज्यादा कह डालते हैं !
हूक , आह ,पीड़ा, टीस
वे भाव हैं
जो
अपने आकार से
ज्यादा , बहुत ज्यादा समेटे हुये हैं दर्द !
मैं तो यही चाहूँगा कि
काश ! किसी
को
भी , कभी टीस न हो
सर्वत्र सदा सुख ही सुख हो !
शायद ,ऐसा होने नहीं देगा
नियंता पर
क्योंकि
विरह का अहसास
चुभन, कसक , कोख है सृजन की , टीस !
विवेक रंजन श्रीवास्तव "विनम्र"
2 टिप्पणियां:
विरह का अहसास
चुभन, कसक , कोख है सृजन की , टीस !
-बहुत गहरे और उम्दा भाव समेटे आपकी रचना अच्छी लगी. बधाई.
ईश्वर आपकी प्रार्थना को सुने ... दुनिया से दूर कर दे ... काश, ऊफ, ओह।
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