शनिवार, 25 सितंबर 2010

हमारे मंदिर और मस्जिद को देने के लिये फूल , सुगंध और साया

रोपना है मीठी नीम अब हमें

कभी देखा है आपने किसी पेड़ को मरते हुये ?
देखा तो होगा शायद
पेड़ की हत्या , पेड़ कटते हुये


हमारी पीढ़ी ने देखा है एक
पुराने , कसैले हो चले
किंवाच और बबूल में तब्दील होते
कड़वे बहुत कड़वे नीम के ठूंठ को
ढ़हते हुये



हमारे मंदिर और मस्जिद
को देने के लिये
फूल , सुगंध और साया
रोपना है आज हमें
एक हरा पौधा
जो एक साथ ही हो
मीठी नीम , सुगंधित गुलाब और बरगद सा

4 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत सुन्दर बात ...अच्छी रचना

निर्झर'नीर ने कहा…

सार्थक रचना हर लिहाज से ..बंधी स्वीकारें

Vivek Ranjan Shrivastava ने कहा…

धन्यवाद संगीता जी ..लगता है कि अब चिट्ठा चर्चा को होम पेज बनाना ही पड़ेगा ,..तकनीकी सलाह चाहूंगा कि और कैसे ज्मात होता है कि कहाँ कौन क्या प्रकाशित कर रहा है ...मुझे तो पता ही नही था कि आप लोग इतना अच्छा संकलन और उस पर टिप्पणियो का नियमित ब्लाग चला रहे हैं ..पुनः आभार

vijay kumar sappatti ने कहा…

आदरणीय मित्र ,
जबलपुर की यात्रा के दौरान आपका साथ और प्यार मिला इसके लिए आपका बहुत धन्यवाद.
मैंने भी एक छोटी सी पोस्ट लगायी है इस सम्मलेन पर . कृपया वहां भी पधारे.
http://poemsofvijay.blogspot.com/2010/12/blog-post.html
आपका शुक्रिया , आपसे फिर मिलने की आकांक्षा है .
धन्यवाद.
आपका
विजय