मेरी पहली कविता के लिये मुझे स्वयं उसे ढ़ूँढ़ना पड़ा .कानपुर से प्रकाशित मासिक पत्रिका वालण्टियर के अगस्त १९७९ अंक में प्रकाशित व संभवतः इंजीनियरिंग कालेज के दिनों में १९७८ लिखी गई निम्न कविता मेरी पहली काव्य कृति है . इससे पहले की तुकबंदियों को मैं अब कविता मानने में संकोच करता हूँ , ये और बात है कि उन दिनों उन्हीं को लिखकर बड़ा खुश होता था .तभी मैंने अपना पेन नेम भी स्वयं ही रख डाला था "विनम्र" , लीजिये प्रस्तुत है मेरी पहली कविता ....
जीवन का उद्देश्य अगर हो
दिशाहीन सागर को देखो
उमड़ घुमड़ करता क्रंदन
सीमायें उसकी हैं पर बालू के कच्चे बंधन
नदिया की धारा , पर
रोक सकें न पर्वत कानन
कैसे रोकें ? , है दिशा युक्त नदिया का जीवन
पार करती नित नई मंजिले
वह भाग रही आनन फानन
जीवन का उद्देश्य अगर हो सफलता मजबूर करती ,
चरण चुंबन !
--विवेक रंजन श्रीवास्तव "विनम्र"
3 टिप्पणियां:
अपने जीवन के अनुभव को पहली बार सुंदर अभिव्यक्ति दी थी आपने ... बहुत अच्छी रचना है।
पार करती नित नई मंजिले
वह भाग रही आनन फानन
जीवन का उद्देश्य अगर हो सफलता मजबूर करती ,
चरण चुंबन sunder abhvyakti.
आप को पहली कविता के लिए बधाई! और इस लिए भी कि आप को पहली ही रचना प्रकाशित कराने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
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