आसमां में गुफ्तगू है चल रही ,
चाँद की आये खबर तो ईद हुई
अम्मी बनातीं थीं सिंवईयाँ दूध में ,
स्वाद वह याद आया लो ईद हुई
नमाज हो मन से अदा,
जकात भी दिल से बँटे,
मजहब महज किताब नहीं
पूरे हुये रमजान के रोजों के दिन ,
सौगात जो खुदा की, वो ईद हुई
आतंक होता अंधा जुनूनी बेइंतिहाँ ,
मकसद है क्या इसका भला
गांधी जयंती ईद है इस दफा ,
जो अंत हो आतंक का तो ईद हुई
नजाकत नफासत और तहजीब की
पहचान है मुसलमानी जमात,
आतंक का नाम अब और मुस्लिम न हो,
फैले रहमत तो ईद हुई
कुरान को समझें,
समझें जिहाद का मतलब,
ईद का पैगाम है मोहब्बत
दिल मिलें,भूल कर शिकवे गिले ,
गले रस्मी भर नहीं ,तो ईद हुई
रौनक बाजारों की , मन का उल्लास ,
नये कपड़े ,और छुट्टी पढ़ाई की
उम्मीद से और ज्यादा मिले ,
ईदी बचपन , और बड़प्पन को ईद हुई
--विवेक रंजन श्रीवास्तव
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