सोमवार, 29 सितंबर 2008

गाँधी जंयती पर ईद है इस बार ....

बादलों की ओढ़नी थोड़ा हटाकर
चाँद ने सबसे कहा कल ईद है
पैगाम है यह आसमां से धरती सुने
अंत हो आतंक का , हल ईद है
ईद मुबारक ............विवेक रंजन श्रीवास्तव

4 टिप्‍पणियां:

BrijmohanShrivastava ने कहा…

वाह श्रीवास्तव जी /आप कितना भी छुपने की कोशिश करो -प्यासा कुए को तलाश ही लेता है /भटकती है प्यास मेरे इस नदी से उस नदी तक /और ये जानता था कि प्यास बुझेगी भेडाघाट पर ही तो तलाशता हुआ चला आया / मुरली बैरन भई ये गाना तो सूना था किंतु "बिजली बैरन भई ""इसमें तो गज़ब कर दिया /देखो भई बैसे ही तो व्यंग्य कारों की कमी है और आप नियमित लिखते नहीं -हमें क्यों दुखी कर रहे हो अच्छा साहित्य पढने से बंचित क्यों कर रहे हो [[पहली मुलाक़ात में कुछ ज्यादा तो नहीं हो गया ]]

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

बादलों की ओढ़नी थोड़ा हटाकर
चाँद ने सबसे कहा कल ईद है
पैगाम है यह आसमां से धरती सुने
अंत हो आतंक का , हल ईद है
wah! bhot acche sabdon ka sangrah...bdhai!

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

बादलों की ओढ़नी थोड़ा हटाकर
चाँद ने सबसे कहा आज नया वर्ष है...!

नये वर्ष की शुभ कामनायें...

कडुवासच ने कहा…

... प्रभावशाली रचना।