गुम गये
विवेकरंजन श्रीवास्तव
रामपुर, जबलपुर
दीवाने धर्म के, मय धर्म गुम गये,
मानस भी गुम गई, कुरान गुम गये ।
गुजरात में हुआ जो, बुरा बहुत हुआ,
दुष्मन तलाषते रहे, दोस्त गुम गये ।
साजिष थी, जुनून था या था जिहाद,
लगा पता है पर, कई पते ही गुम गये ।
हमको भी हवा ने कुछ इस तरह छला,
हम भीड़ हो गये, इंसान गुम गये ।
जुनूनियों की जिद का असर, बच्चों पे यों हुआ,
कुछ यतीम हो गये, और कुछ गुम गये ।
बस्तियाॅं बेषक बसा लोगे फिर से,
लाओगे कहाॅं से, जो रिष्ते गुम गये ।
शब्दों ने अक्षरों ने, भाषा ही बदल ली,
भाव सो गये और गीत गुम गये ।
नई आकृति बदल बनें ।
विवेकरंजन श्रीवास्तव
रामपुर, जबलपुर
काला आखर भेंैस बराबर,
बहुत बोझ रद्दी ढ़ोई।
पढ लिख कर अब बनें साक्षर,
सद्ग्रंथो की रहल बनें ।
अर्थहीन अक्षर एकाकी,
भाव शून्य वे व्यर्थ रहें,
टाओ साथी हाथ बढ़ायें
साथ सार्थक गजल बनें ।
दाग बद्नुमा पिछड़ेपपन का
सबको मिल धोना होगा,
कीचड़ में जन्म कमल पाता
कर्म करें और सफल बनें ।
पाठ जिदंगी पढा रही है,
साथ तुम्हारे शासन है,
लाभ उठायें योजनाओं का
आरक्षण का सुफल बनें ।
दीन, हीन, अस्पृष्य, दलित
लाचार नहीं वो
अपने पैरो होयें खड़े
सब समर्थ सबल बनें ।
पथ दर्षक बाबू जगजीवन,
भीमराव और ज्योतिफुले,
गुरू घासी, रैदास, धाय पन्ना,
आदर्ष हमारे विमल बनेें ।
पीछे पीछे चलते आये
कई सदियों से,
अगुवाई का समय आज है,
अपने हाथों भाग्य सवारें, पहल बनें ।
अपनी खुद जगह बनायें
छोड़ कालिमा धवल बनें,
छोड़े बाना बौना कद लम्बा कर लें,
नये रूप में नई आकृति बदल बनें ।
इस बार होली में
विवेकरंजन श्रीवास्तव
रामपुर, जबलपुर
रंगो में सराबोर इस कदर हुये,
इस बार होली में ।
अपने ही घर में बाहर रहे खड़े,
इस बार होली में ।
जल के राख हो, नफरत की होलिका,
आल्हाद का प्रहलाद बचे, इस बार होली में ।
हो न फिर फसाद, मजहब के नाम पर,
केसर में, हरा रंग मिले, इस बार होली में ।
बाकी न रहे अरमान, रंग इस तरह मलो,
छेड़ो रंगो में फाग, इस बार होली में ।
ठस रंग में रंगी सेना, अच्छी न लगे अब,
खूनी न हों अंदाज, इस बार होली में ।
झंडा ऊॅंचा रहे हमारा
विवेकरंजन श्रीवास्तव
रामपुर, जबलपुर
जन गण की धुन पर इतराता,
सौ करोड़ मन, तन ने धारा,
गूंज रहा बस इक जयकारा,
झंड़ा ऊॅंचा रहे हमारा.............
राजनीति रंगो की करते,
भावनाओ से खेल रहे जो,
जनता ने उनको ललकारा,
झंड़ा ऊॅंचा रहे हमारा.............
कोई कतर कर इसकी पट्टियाॅं,
बना रहा संकीर्ण झंड़ियाॅं,
सजा उन्हें देगा जन सारा,
झंड़ा ऊॅंचा रहे हमारा.............
प्रत्युत्तर में करे प्रतिक्रिया,
मन उनके भी साफ नहीं हैं,
सत्ता का गंदा गलियारा,
झंड़ा ऊॅंचा रहे हमारा.............
झंड़ा, उनकी नहीं बपौती,
झंड़ा है अब एक चुनौती,
जन जन ने है आज पुकारा
झंड़ा ऊॅंचा रहे हमारा.............
झंड़ा मिला विरासत हमको,
सदा रहा है, सदा रहेगा,
नभ में जैसे हो ध्रुव तारा
झंड़ा ऊॅंचा रहे हमारा.............
उनकी गजल है ।
विवेकरंजन श्रीवास्तव
रामपुर, जबलपुर
नुपुर का नर्तन, उनकी गजल है ।
तबले की सरगम, उनकी गजल है ।।
सितारों की धड़कन, हैं हाथ उनके ।
रागों का जादू, उनकी गजल है ।।
रंगो की रौनक, चितेरा सबेरा ।
पनघट की गोरी, उनकी गजल है ।।
भावो की सरिता, गुंजन स्वरों का ।
शब्दों की बंदिष, उनकी गजल है ।।
कहानी का मंचन, हमारी पहल है ।
परदे पे नाटक, उनकी गजल है ।।
वोटो का सौदा, कुर्सी का हिस्सा ।
संसद में प्रहसन, कैसी गजल है ।।
विकटों की बारिष, चैको का टोटा ।
किस्मत क्रिकेट की, रूॅंआसी गजल है ।।
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