हम शब्दों के बुनकर हैं
विवेक रंजन श्रीवास्तव
सी॑ - 6 एम.पी.ई.बी.कालोनी
रामपुर, जबलपुर ४८२००८
मोबा. ०९४२५४८४४५२
ई मेल vivekranjan.vinamra@gmail.com
देवी हो तुम अक्षर की माँ ,
हम शब्दों के बुनकर हैं !
भाव प्रसून गूँथ भाषा में ,
गीत लाये हम चुनकर हैं !!
भाव भंगिमा और तालियाँ,
दर्शक कवि के दर्पण हैं !
सृजन सफल जब हों आल्हादित
श्रोता रचना सुनकर हैं !!
हम पहचाने नीर क्षीर को ,
सबको इतनी बुद्धि दो !
विनत कामना करते हैं माँ ,
भाव शब्द से गुरुतर हो !!
बहुत प्रगति कर डाली हमने
आजादी के बरसों में !
और बढ़े आबादी पर माँ ,
धरती भी तो बृहतर हो !!
हम सब सीधे सादे वोटर ,
वो आश्वासन के बाजीगर !
पायें सब के सब मंत्रीपद,
पर कोई तो "वर्कर" हो !!
राग द्वेष छल बढ़ता जाता
धर्म दिखावा बनता जाता !
रथ पर चढ़ जो घूम रहे हैं ,
कोई तो पैगम्बर हो !!
घर में घुस आतंकी बैठे ,
खुद घर वाले सहमे सहमे !
चुन चुन कर के उनको मारे
ऐसा कोई रहबर हो !!
शिलान्यास तो बहुत हो रहे
प्रस्तर पट सब पड़े अधूरे ,
आवंटन को दिशा मिले अब
काम कोई तो जमकर हो!!
कागज कलम और कविता से
मन वीणा स्पंदित कर के !
युग की दिशा बदलकर रख दे
कवि ऐसा जादूगर हो !!
अँत करो माँ अंधकार का
जन गण के मन में प्रकाश दो !
नव युग के इस नव विहान में
बच्चा बच्चा "दिनकर" हो !!
विवेक रंजन श्रीवास्तव
4 टिप्पणियां:
देवी हो तुम अक्षर की माँ ,
हम शब्दों के बुनकर हैं !
भाव प्रसून गूँथ भाषा में ,
गीत लाये हम चुनकर हैं !!
adbhut shabd sanyojana
हम सब सीधे सादे वोटर ,
वो आश्वासन के बाजीगर !
पायें सब के सब मंत्रीपद,
पर कोई तो "वर्कर" हो !!
idhar to kamaal huaa
aap se samvad kam ho pata chalie blog pe tipiyane ka khel khelen
bahut khoob
भाई विवेक जी क्या सुंदर रचना है ये| बहुत ही प्रभावशाली| वैसे मित्र 'हम शब्दों के बुनकर हैं' मैने कभी लिखा तो नहीं, पर अगर पता नहीं होता तो शायद ये मुझसे भी हो जाता| आपने पकड़े ही ऐसे विलक्षण शब्द हैं| मेरी व्यक्तिगत राय में ऐसा हम सब के साथ होता रहता है| बहुत बहुत बधाई इतनी सशक्त रचना के लिए और साथ ही साथ आपकी सदाशायता के लिए भी| कभी समय मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी पधारिएगा मित्र|
http://thalebaithe.blogspot.com
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