सोमवार, 8 अक्तूबर 2007

निर्वस्त्र !

निर्वस्त्र !
विवेक रंजन श्रीवास्तव
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दुनियां मे जब वह आया था
निर्वस्त्र था
तुम भी निर्वस्त्र ही आये थे
ये अलग बात है कि
तुम्हें नर्सिंग होम में ही
झक सफेद तौलिये में लपेट दिया गया
और वह सारा बचपन
नंगा ही घूमता रहा
जब कभी तुम्हारा उससे सामना हुआ
छि॔ गंदा लडका कहकर
तुम्हें उसका परिचय दिया गया
आज जब
उसके मेहनत कश हाथों ने
श्रम कर सी ली है
इज्जत की एक छोटी सी टोपी
तब तुमने
कृपा पूर्वक
अपना पुराना पतलून
देकर उसे कपडों में भी
एक बार फिर कर डाला है
निर्वस्त्र !

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