रविवार, 28 अप्रैल 2019


अच्छा लगता है
विवेक रंजन श्रीवास्तव

 कवि गोष्ठी से मंथन करते , घर लौटें तो अच्छा लगता है
 शब्द तुम्हारे कुछ जो लेकर,  घर लौटें तो अच्छा लगता है
 कौन किसे कुछ देता यूँ ही,  कौन किसे सुनता है आज
 छंद सुनें और गाते गाते,  घर लौटें तो अच्छा लगता है
शुष्क समय में शून्य हृदय हैं , सब अपनी मस्ती में गुम हैं
 रचनायें सुन भाव विभोरित ,  घर लौटें तो अच्छा लगता है
 मेरी पीड़ा तुम्हें पता क्या  , तेरी पीड़ा पर चुप हम हैं
 पर पीड़ा पर लिखो पढो जो ,और सुनो  तो अच्छा लगता है
 एक दूसरे की कविता  पर, मुग्ध तालियां उन्हें मुबारक
 गीत गजल सुन द्रवित हृदय जब रो देता तो अच्छा लगता है
 कविताओं की विषय वस्तु तो , कवि को ही तय करनी है
 शाश्वत भावों की अभिव्यक्ति सुनकर किंतु अच्छा लगता है
 रचना  पढ़े बिना , समझे बिन  ,  नाम देख दे रहे बधाई
 आलोचक पाठक की पाती  पढ़कर लेकिन अच्छा लगता है
 कई डायरियां , ढेरों कागज, खूब रंगे हैं लिख लिखकर
 पढ़ने मिलता छपा स्वयं का, अब जो तो अच्छा लगता है
 बहुत पढ़ा  और लिखा बहुत , कई जलसों में शिरकत की
घण्टो श्रोता बने , बैठ अब मंचो पर अच्छा लगता है
बड़ा सरल है वोट न देना ,  और कोसना शासन को
लम्बी लाइन में लगकर पर , वोटिंग करना अच्छा लगता है
जीते जब वह ही प्रत्याशी,  जिसको हमने वोट किया
मन की चाहत पूरी हो  ,सच तब ही तो अच्छा लगता है
कितने ही परफ्यूम लगा लो विदेशी खुश्बू के
पहली बारिश पर मिट्टी की सोंधी खुश्बू से अच्छा लगता है
बंद द्वार की कुंडी खटका भीतर जाना किसको भाता है
बाट जोहती जब वो आँखें मिलती तब ही अच्छा लगता है
बच्चों के सुख दुख  के खातिर पल पल  जीवन होम करें
बाप से बढ़कर  निकलें बच्चें ,तो तय है कि अच्छा लगता है

विवेक रंजन श्रीवास्तव
ए 1 शिला कुंज नयागांव जबलपुर
मो 7000375798




रविवार, 19 अगस्त 2018

५ बाल गीत

1
योग
विवेक रंजन श्रीवास्तव

थोड़ा-थोड़ा
 योग करो
 सुबह सवेरे 
  रोज करो

 बिल्कुल सीधे
  खड़े रहो
  शव आसन में 
   पड़े रहो 

सांस भरो और 
उठो जरा
 छोड़ो सांसे 
  रुके रहो 

बैठ के आसन
 लेट के आसन
 खड़े-खड़े भी 
  होते आसन

   जैसा जैसा
   गुरु कहें
   वही करो और 
   स्वस्थ रहो ।

2
सफाई
 विवेक रंजन श्रीवास्तव 

रखना साफ-सफाई भाई 
रखना साफ-सफाई
 कभी ना फैलाना तुम कचरा रखना साफ-सफाई

 चाकलेट बिस्किट जो खाओ
रैपर कूड़ेदान में डालो 
फल खाओ तो गुठली छिलके कचरे के डिब्बे में फेंको

 कॉपी अपनी कभी न फाड़ो पुस्तक के पन्ने मत मोड़ो
चिन्धी बिलकुल न फैलाना
रखना साफ सफाई भाई
 रखना साफ सफाई


3
बिजली
विवेक रंजन श्रीवास्तव

 बड़ी कीमती
 होती बिजली
 बिन बिजली 
रहता अंधियार

 चले न पंखा 
और न गीजर
बिन बिजली
 बेकार है कूलर

 बिजली से ही 
चलता टी वी
बिन बिजली 
बेकार कंप्यूटर 

इसीलिए तो 
कहते हैं 
बिजली ना 
बेकार करेंगे 
कमरे से बाहर 
जाना हो
 तो सारे स्विच 
बंद करेंगे


4
 पानी 
विवेक रंजन श्रीवास्तव 

पानी प्यास बुझाता है 
पानी ही नहलाता है
 पानी से बनता है खाना
 पानी ही उपजाता दाना 

पानी मिलता नदियों से 
कुओ और तालाबों से 
नल में जो पानी है आता
 वह आता है बांधों से 

बादल बरसाते हैं पानी 
पानी है सबकी जिंदगानी
 बिन पानी के शुष्क धरा 
पानी ना हो व्यर्थ जरा


 अच्छा लगता है 
विवेक रंजन श्रीवास्तव 

शुद्ध हवा में
 सुबह सवेरे 
गहरी गहरी 
सांसे लेना अच्छा लगता है

 सोकर उठकर
 टूथ ब्रश करना 
और नहाना अच्छा लगता है 

धुली धुलाई 
यूनिफॉर्म में 
सही समय पर 
शाला आना अच्छा लगता है 

भूख लगे तो 
मां के हाथों का 
हर खाना अच्छा लगता है

 होमवर्क पूरा 
  जो हो तो
  लोरी और कहानी सुनकर 
तब सो जाना अच्छा लगता है

चूनर, हरी ओढ़ानी है!

चूनर, हरी ओढ़ानी है!

 विवेक रंजन श्रीवास्तव
 vivek1959@yahoo.co.in

रोप पोस कर पौधे, ढ़ेरो हरे भरे
वसुंधरा को चूनर, हरी ओढ़ानी है

हों संकल्प , हमारे फलीभूत
हम प्रयास तो करें, सफलता आनी है

जब खरीदा, इक सिलेंडर आक्सीजन
तब कहीं वृक्षों की कीमत हमने पहचानी है

जहाँ अंकुरण बीज का संभव है
ब्रम्हाण्ड में केवल, धरा यही वरदानी है

घाटियां गहराईयों की, ऊँचाईयां पाषाण की
वादियां सब होंगी हरी, ये हमने ठानी है

आसमां से ऊपर , नीले गगन से
दिख्खे हरा जो नक्शा, वो हिंदुस्तानी है

वृक्ष झीलें लगें, चूनर में टंके सलमा सितारे
कुदरत की मस्ती है,ये उसकी कारस्तानी है

इंद्र ले सतरंगा धनुष, अगली दफा जब आये तो
पाये पहाड़ो पर भी हरियाली, ये ही कहानी है

बांस के हरे वन , साल के घने जंगल
लगाये होंगे किसने, ये उसकी मनमानी है

हरितमा फूल फल लकड़ी और आक्सीजन
हुआ हिसाब तब समझ आया कि पौधा दानी है

वन हैं तो पशु हैं , पशु हैं तो है प्रकृति
काट रहे हैं जो जंगल ये उनकी नादानी है

अरसे से रहा है जंगल में जंगल के साथ
जंगल के मामले में आदिवासी ज्यादा ग्यानी है

पर्यावरण संतुलन, मतलब जलवायु का साथ
याद रखना , वृक्ष हैं पर्यावरण है तो पानी है

वृक्षारोपण सिर्फ फोटो और अखबारो की खबरें नहीं
सूखी जमीन पर हरी चादर सचमुच बिछानी है

गुरुवार, 9 अगस्त 2012

Soak no more the shining India

Soak no more the shining India
- Vivek Ranjan Srivastava
India is shining
From Earth to the Moon,
Space to the depths of ocean,
From east to west, north to south,
India is shining.
India is shining Because of its culture,
Heritage and science,
Because of its emotional touch
And universal fraternity
India is shining.
Soak no more the shining India
In the Sections, rules,
Clause and sub clauses of
Constitution and the law
Soak no more shining India
In the sludge of corruption,
Black money, evil, communalism,
Reservations and regionalism,
These are the dirty spots
On The tricolor flag of Mother India
It is our generation
Who have to make India Shining,
THE SHINING INDIA
,

शनिवार, 4 अगस्त 2012

लव मैरिज या अरेंज्ड मैरिज ?

लव मैरिज या अरेंज्ड मैरिज ?

लव तो हो ही जाता है , दो युवाओ में .

पर शादी केवल लव ही तो नही है !

सक्सेजफुल शादी के लिये .

लव के साथ जरूरी होता है ,

कमिटमेंट भी . फेथ भी . म्युचुएल रिस्पेक्ट भी .

अब परिवार नहीं होते बहुत बड़े ,

भाई बहिन , माँ पिता से

जो प्रगाढ़ रिलेशन होते हैं ,लड़के या लड़की के ,

वे शादी के बाद भी बने रहें ,

इसलिये जरूरी होता है एडजसमेंट भी , शादी में.

मतलब अरेंज्ड लव मैरिज हो

या

अरेंज्ड मैरिज तब की जाये

जब एक दूसरे को समझने लगें पार्टनर्स

चैटिंग से , मीटिंग से और मोबाइल पर लम्बी लम्बी बातों से

मतलब शादी हो तब , जब हो जाये लव !

बुधवार, 8 फ़रवरी 2012

वसीयत

माना
कि मौत पर वश नही अपना
पर प्रश्न है कि
क्या जिंदगी सचमुच अपनी है ?
हर नवजात के अस्फुट स्वर
कहते हैं कि ईश्वर
इंसान से निराश नहीं है
हमें जूझना है जिंदगी से
और बनाना है
जिदगी को जिंदगी

इसलिये
मेरे बच्चों
अपनी वसीयत में
देकर तुम्हें चल अचल संपत्ति
मैं डालना नहीं चाहता
तुम्हारी जिंदगी में बेड़ियाँ
तुम्हें देता हूँ अपना नाम
ले उड़ो इसे स्वच्छंद/खुले
आकाश में जितना ऊपर उड़ सको

सूरज की सारी धूप
चाँद की सारी चाँदनी
हरे जंगल की शीतल हवा
और झरनों का निर्मल पानी
सब कुछ तुम्हारा है
इसकी रक्षा करना
इसे प्रकृति ने दिया है मुझे
और हाँ किताबों में बंद ज्ञान
का असीमित भंडार
मेरे पिता ने दिया था मुझे
जिसे हमारे पुरखो ने संजोया है
अपने अनुभवों से
वह सब भी सौंपता हूँ तुम्हें
बाँटना इसे जितना बाँट सको
और सौंप जाना कुछ और बढ़ाकर
अपने बच्चों को

हाँ
एक दंश है मेरी पीढ़ी का
जिसे मैं तुम्हें नहीं देना चाहता
वह है सांप्रदायिकता का विष
जिसका अंत करना चाहता हूँ मैं
अपने सामने अपने ही जीवन में...

11 टिप्पणियाँ:

रचना सागर says
16 जून 2009 2:18 अपराह्न

हाँ
एक दंश है मेरी पीढ़ी का
जिसे मैं तुम्हें नहीं देना चाहता
वह है सांप्रदायिकता का विष
जिसका अंत करना चाहता हूँ मैं
अपने सामने अपने ही जीवन में...

बहुत खूब।

सुषमा गर्ग says
16 जून 2009 2:33 अपराह्न

वसीयत एसी ही होनी चाहिये इसी से वसुधैव कुटुम्बकम होगा।

Vijay Kumar Sappatti says
16 जून 2009 2:54 अपराह्न

bahut sundar abhivyakti ... aur in fact yahi aaj ka sahi nirnay honga ...

badhai aur aabhar...

vijay

दिगम्बर नासवा says
16 जून 2009 4:04 अपराह्न

हाँ
एक दंश है मेरी पीढ़ी का
जिसे मैं तुम्हें नहीं देना चाहता
वह है सांप्रदायिकता का विष


kitnaa दर्द chipa है........... इस vasiyat में.......... लाजवाब लिखा

अभिषेक सागर says
16 जून 2009 5:01 अपराह्न

बहुत अच्छी कविता है, बधाई।

बेनामी says
16 जून 2009 5:12 अपराह्न

Nice Poem, Thanks.

Alok Kataria

रंजना says
16 जून 2009 5:20 अपराह्न

Sahi kaha...
Sundar rachna...

महेन्द्र मिश्र says
16 जून 2009 9:47 अपराह्न

सुन्दर अभिव्यक्ति से लबरेज रचना है . आभार.

राजीव तनेजा says
17 जून 2009 7:54 पूर्वाह्न

समय की ज़रूरत भी यही है.....बढिया रचना...बधाई

राजीव तनेजा says
17 जून 2009 7:55 पूर्वाह्न

समय की ज़रूरत भी यही है.....बढिया रचना...बधाई

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` says
17 जून 2009 6:47 अपराह्न

एक सुँदर कृति !
- लावण्या

शनिवार, 12 नवंबर 2011

नई पीढ़ी तक गीता उसी काव्यगत व भावगत आनन्द के साथ पहुंच सके ......

श्रीमद्भगवत गीता विश्व का अप्रतिम ग्रंथ है !
धार्मिक भावना के साथ साथ दिशा दर्शन हेतु सदैव पठनीय है !
जीवन दर्शन का मैनेजमेंट सिखाती है ! पर संस्कृत में है !
हममें से कितने ही हैं जो गीता पढ़ना समझना तो चाहते हैं पर संस्कृत नहीं जानते !
मेरे ८४ वर्षीय पूज्य पिता प्रो सी बी श्रीवास्तव विदग्ध जी संस्कृत व हिन्दी के विद्वान तो हैं ही , बहुत ही अच्छे कवि भी हैं , उन्होने महाकवि कालिदास कृत मेघदूत तथा रघुवंश के श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद किये , वे अनुवाद बहुत सराहे गये हैं . हाल ही उन्होने श्रीमद्भगवत गीता का भी श्लोकशः पद्यानुवाद पूर्ण किया . जिसे वे भगवान की कृपा ही मानते हैं .
उनका यह महान कार्य http://vikasprakashan.blogspot.com/ पर सुलभ है . रसास्वादन करें . व अपने अभिमत से सूचित करें . कृति को पुस्तकाकार प्रकाशित करवाना चाहता हूं जिससे इस पद्यानुवाद का हिन्दी जानने वाले किन्तु संस्कृत न समझने वाले पाठक अधिकतम सदुपयोग कर सकें . नई पीढ़ी तक गीता उसी काव्यगत व भावगत आनन्द के साथ पहुंच सके .
प्रसन्नता होगी यदि इस लिंक का विस्तार आपके वेब पन्ने पर भी करेंगे . यदि कोई प्रकाशक जो कृति को छापना चाहें , इसे देखें तो संपर्क करें ..०९४२५८०६२५२, विवेक रंजन श्रीवास्तव