रविवार, 19 अगस्त 2018

चूनर, हरी ओढ़ानी है!

चूनर, हरी ओढ़ानी है!

 विवेक रंजन श्रीवास्तव
 vivek1959@yahoo.co.in

रोप पोस कर पौधे, ढ़ेरो हरे भरे
वसुंधरा को चूनर, हरी ओढ़ानी है

हों संकल्प , हमारे फलीभूत
हम प्रयास तो करें, सफलता आनी है

जब खरीदा, इक सिलेंडर आक्सीजन
तब कहीं वृक्षों की कीमत हमने पहचानी है

जहाँ अंकुरण बीज का संभव है
ब्रम्हाण्ड में केवल, धरा यही वरदानी है

घाटियां गहराईयों की, ऊँचाईयां पाषाण की
वादियां सब होंगी हरी, ये हमने ठानी है

आसमां से ऊपर , नीले गगन से
दिख्खे हरा जो नक्शा, वो हिंदुस्तानी है

वृक्ष झीलें लगें, चूनर में टंके सलमा सितारे
कुदरत की मस्ती है,ये उसकी कारस्तानी है

इंद्र ले सतरंगा धनुष, अगली दफा जब आये तो
पाये पहाड़ो पर भी हरियाली, ये ही कहानी है

बांस के हरे वन , साल के घने जंगल
लगाये होंगे किसने, ये उसकी मनमानी है

हरितमा फूल फल लकड़ी और आक्सीजन
हुआ हिसाब तब समझ आया कि पौधा दानी है

वन हैं तो पशु हैं , पशु हैं तो है प्रकृति
काट रहे हैं जो जंगल ये उनकी नादानी है

अरसे से रहा है जंगल में जंगल के साथ
जंगल के मामले में आदिवासी ज्यादा ग्यानी है

पर्यावरण संतुलन, मतलब जलवायु का साथ
याद रखना , वृक्ष हैं पर्यावरण है तो पानी है

वृक्षारोपण सिर्फ फोटो और अखबारो की खबरें नहीं
सूखी जमीन पर हरी चादर सचमुच बिछानी है

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