श्रद्धा जैन गजल के सुंदर शब्दो की हमसफर हैं ....उनकी ये पंक्तियां फेस बुक पर ..
कुछ बात तो ज़रूर थी, मिलने के बाद अब तलक
खुद की तलाश में हूँ मैं, लेकिन मेरे निशाँ नहीं
दुश्मन बना जहान ये, ऐसी फिज़ा बनी ही क्यूँ
मेरे तो राज़, राज़ हैं, कोई भी राज़दां नहीं
और यह बात बढ़ाई हमने .....
गुमशुदा कहो ना उसे , मिल ही जायेगा फेस बुक में
वो शख्स भी अपनों सा ही है, कोई शहनशां नहीं
1 टिप्पणी:
बहुत बढ़िया!!
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