मंगलवार, 16 अक्तूबर 2007

धर्म तो प्रेम का दूसरा नाम है


धर्म तो प्रेम का दूसरा नाम है ,
प्रेम को कोई बंधन नहीं चाहिये
सच्ची पूजा तो होती है मन से जिसे
आरती धूप चंदन नहीं चाहिये

कोई टिप्पणी नहीं: